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________________ ८६ को शंकर बनाने में आप श्री भी पूर्ण सक्षम है। आपकी स्नेह, सद्भावना ही हमारा मार्ग प्रशस्त कर सकेगी। आदरांजलि -महासती सुशीलकुँवर जी (स्व. पू. श्री अमृतकुंवर जी म. की सुशिष्या) STUER "संतः स्वतः प्रकाशते, न परतो नृणाम् कदा। आमोदो नहि कस्तूर्थ्या, शपथेन विभाव्यते ॥" अर्थात् सत्पुरुषों के सद्गुण स्वयं ही प्रकाशमान होते हैं, दूसरों के प्रकाश से नहीं । कस्तूरी की सुगन्ध शपथ दिलाकर नहीं बतायी जाती, उसकी खुशबू ही उसकी महत्ता प्रकट करती है। उसी प्रकार महापुरुषों का जीवन भी सद्गुणशीलता, सदाचार की सुगन्ध से सुरभित होता है और सुरभित कर देता है। साधना के उत्तुंग शिखर पर पहुँचने के लिए सम्यग्ज्ञान, सम्यग्दर्शन, सम्यग् चारित्र की मशालें लेकर अज्ञान अंधकार विच्छिन्न करने के लिए वे सदा प्रयत्नशील रहते हैं। मार्ग में आने वाले संकटों का सामना मुस्काते हुए करके आगे बढ़ जाते हैं। उनका नाम इतिहास के पृष्ठों पर सुवर्णाक्षर में अंकित हो जाता है। ऐसे संत पुरुषों के जीवन की दिव्य-झाँकी जन-जीवन के अन्तस्थल में तप, त्याग एवं संयम की उदात्त भावनाएँ जगाती है, व्यक्ति को जीवन में कुछ कर गुजरने को प्रेरित करती है और जीवन-निर्माण की दिशा में आगे बढ़ाती है। "महापुरुषों की जीवनी हमको यह बतलाती है। उनका अनुसरण करने वाले को उच्च बनाना सिखाती है। कालरूपी खेती पर चिन्ह वे जो तज जाते हैं। आदर्श उनको मानकर आगन्तुक भी ख्याति पा जाते हैं ।" ऐसे महामनस्वी, ओजस्वी, तेजस्वी, वर्चस्वी महायशस्वी प्रवर श्री पुष्कर मुनिजी म. सा. का जीवन संत परम्परा की एक कड़ी है। आपश्री ने बाल्यकाल में ही दीक्षा लेकर अल्पसमय में ही आगमों का एवं अनेक भाषाओं का गहरा अध्ययन किया। आपश्री स्पष्ट एवं निर्भीक, सुशिक्षा के प्रकाशक, धर्म के प्रभावक, आध्यात्मिक चिकित्सक, उदात्त विचारक, ज्ञान-ध्यान के उपासक ऐसे सर्वतोमुखी सर्वांगीण सार्वभौमिक सन्त पुरुष थे। आपश्री ने अपने मुख से, लेखनी से एवं जीवन से जनता को जो-जो दिया वह आज भी जनमानस पर अंकित है और रहेगा। "जग में जीवन श्रेष्ठ वही, जो फूलों-सा मुस्काता है। अपने गुणों से सारे जग के कण-कण को महकाता है।" परम हर्ष की बात तो यह है कि वर्तमान के श्रमणसंघीय आचार्यप्रवर पू. श्री देवेन्द्र मुनिजी म. सा. आपश्री के ही शिष्य D.COD. उपाध्याय श्री पुष्कर मुनि स्मृति ग्रन्थ रत्न हैं। आप जैसे महान विभूति का सन्मान, बहुमान करना याने अपनी संस्कृति-सभ्यता को अमर बनाना है, अपने आपको धन्य बनाना है। आपश्री के पवित्र पावन पद पंकजों में भावभीनी पुष्पांजलि सादर, सश्रद्धा समर्पित करते हुए आनंदानुभूति हो रही है। जिसने पुष्कर को पाया -सायी संघमित्रा (बरेली सम्प्रदाय) जिसने भी पुष्कर छाया को पाया, उसने जीवन के हर कष्ट से छुटकारा पाया था यह मेरा भी अनुभव है। पुष्कर के चले जाने से पुष्करहीन जीना भी कठिन है। गुरुदेव पुष्कर मुनिजी सिर्फ जैनियों के ही वन्दनीय नहीं थे। उनका संयममय जीवन अजैनों के लिए भी श्रद्धास्पद रहा है। आज समाज ने काल की चक्की में एक अनमोल रत्न पीसा जाता देखा, समाज में गुरुदेव पुष्कर की कमी कभी भी पूर्ण नहीं हो सकती । गुरुदेव पुष्कर सी मिसाल मिलना मुश्किल है। पुष्कर दिन दिल सबका निष्प्राण हुआ। माली जाता बाग भी वीरान हुआ । यह समाचार भी दुखदायी है For Private & Personal Use Only -साध्वी सुमन कुँवर जी म. -साध्वी कीर्तिसुधा जी म. उपाध्याय पुष्करमुनि जी के देवलोक के समाचार सुनते ही बहुत दुख हुआ। ऐसे तो बहुत दिनों से स्वास्थ्य के समाचार सुनते थे किन्तु ऐसा नहीं सोचा था कि आज ही वह दिन उदित होगा। पांचवाँ आरा दुखदायी होता है ऐसे ही हमें हमारे बुजुर्ग जी महान् संत थे जैसे आचार्य १००८ श्री आनंदऋषि जी म. सा. तथा उपाध्याय पुष्करमुनिजी म. सा. ऐसे महान् संत हमें छोड़-छोड़ के गये हैं। यह समाचार ही हमारे लिये दुखदायी है। मनीषी सन्त रत्न -महासती श्री शान्ताकुमारी 'शास्त्री' (मालव सिंहनी स्व. श्री कमलावती जी म. सा. की सुशिष्या) भारत भूमि अनंत काल से अध्यात्म भूमि रही है। महापुरुषों के प्रति श्रद्धाशील रही है। ऋषि, मुनि एवं संतों का व्यक्तित्व और कर्तृत्व सदा प्रेरणादायी एवं सामान्य जन से विशिष्ट होता है। उन्हीं D 200 www.jainelibrary.org.
SR No.012008
Book TitlePushkarmuni Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni, Dineshmuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1994
Total Pages844
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size105 MB
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