SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 130
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 30003200- 0 100000 60566660 RDED909005PEPces उपाध्याय श्री पुष्कर मुनि स्मृति-ग्रन्थ । गुरुदेव! आपके चरणों में भावभीनी श्रद्धाञ्जलि अर्पित चमकता तारा टूट गया करती हूँ। -साध्वी विनयप्रभा जी जग कहता है रहे नहिं, मन कहता है गये न हिं। उपाध्याय श्री सूर्य समान तेजस्वी, धर्म के सारथी, धर्म के जग भी सच्चा मन भी सच्चा, श्रेष्ठ चक्रवर्ती, अनंत गुणसागर, समाज भूषण, अनुपम अशरण को सभी में हैं पर दिखे नहीं ॥ शरण देने वाले, श्रेष्ठतम ध्यानयोग के साधक, दिव्य, यथानाम तथागुण सम्पन्न जैसे पुष्प दूर-दूर तक अपनी सौरभ फैलाकर अनेक मनुष्यों के मन को ताजगी से भर देता है, और हृदय को प्रफुल्लित आस्था की ज्योति उपाध्याय श्री बनाता है। उसी प्रकार इस विश्व में ध्यान-साधना-तपसाधना-जप साधना -साध्वी चेलना जी D की सुगन्धि फैलाने वाले, दिव्य जीवन की कला सिखाने वाले, (उप प्रवर्तिनी महा. श्री शशिकान्ता जी म. की पौत्री शिष्या) समाज को गौरवान्वित कराने वाले, शासन की शान बढ़ाने वाले, ‘स्वर्गादपि गरीयसी' यह भारतभूमि युगों-युगों से सन्तों, प्रवचन के माध्यम से प्रभावना करने वाले अपनी उत्कृष्ट प्रज्ञा महात्माओं, मुनियों, मनीषियों और ऋषियों की तपोभूमि रही है वाले, श्रेष्ठतम जीवन जी कर प्रेरणा का पान कराने वाले गुरु और इन महात्माओं के कारण ही इस भूमि को अखिल चराचर चरण में समर्पणता करने वाले आप महापुरुष थे, आपके गुणों का जगत को ज्ञान का दिव्य प्रकाश बाँटने और अखण्ड निजानन्द धर्म वर्णन करने में मेरी शक्ति नहीं है, फिर भी सिकन्दराबाद के का सन्देश विकीर्ण करने का सौभाग्य मिलता रहा है। वर्षावास में जो अनुभव हुआ, वह स्मृतियाँ आज भी आँखों के सामने दिखाई देती हैं। आपकी पहाड़ी आवाज, निर्भीक वृत्ति, स्पष्ट धर्मज्ञान की इस अजन, निर्बाध परम्परा के संवाहकों में इस तत्त्वयुक्त धारणा मजबूत थी, श्रद्धा आत्मस्पर्शी, ओजस्वी थी। वर्तमान शती में भी एक मूर्धन्य परमसन्त का नाम उभर कर हमारे HD प्रभावशील वचनों से जनता का दिल आनंद से विभोर हो जाता समक्ष आया है, जिनका समस्त जीवन सर्वजन-कल्याण और था। दुःख की बात यह है कि लाड़ले प्यारे लाड़ले संयम अधोगामी समाज के पुनरुत्थान के लिए समर्पित रहा है। प्राणिमात्र सिन्धु, शास्त्रज्ञान के विशाल सिन्धु वरड़िया कुल के चंद्र, से प्रेम करना, अहिंसाधर्म का पालन करना और अनेकान्त दर्शन विजामाता के संदीप, पिता जीवन के रलद्वीप, आत्मप्रकाशक, के माध्यम से सबके लिए मोक्ष के द्वार अनावृत करना ही जिनका आनन्द के उल्लास, पुष्कर की सुहास, वाणी भूषण गौरवर्ण, एकनिष्ठ ध्येय रहा है, ऐसे ही प्रातः स्मरणीय सन्त, अध्यात्म-योगी, सुगठित देह धारक, चिन्तन से परिपूर्ण, धरासम सहिष्णु सूर्य समान उपाध्याय परमपूज्य गुरुदेव श्री पुष्कर मुनिजी म. सा. के लिए सूर्य तेजस्वी ऐसे सुशिष्य की आचार्य पद-पट्टाभिषेक महोत्सव के बाद को दीपक दिखाने जैसा कुछ कहने का दुस्साहस मैं कर रही हूँ। श्री आशीर्वाद रूपी आँखों से और अमृत भरे शब्दों से, वात्सल्य भरे पुष्कर मुनिजी म. तो साक्षात् ज्ञान-राशि, अन्तर्दर्शी चिन्तक और मातृ हृदय से और कोमल हाथों के आशीर्वाद से, भावभीनी नजरों कल्याण स्वरूप थे, जिनके विषय में मुझ अल्पज्ञ का कुछ कहना, से आपके पद्ममल के चरणों से भले ही शारीरिक पीड़ा से आप आशा है, एक क्षम्य धृष्टता मानी जायेगी। द्रव्य रूप से नहीं, परन्तु भावरूप से आप उन्हें अलंकृत सदा करते जैसा बहुविदित है, मुनिश्री ने पूज्य गुरुदेव श्री ताराचन्द्र जी रहे, अदृष्टाशक्ति से आपकी कृपा दृष्टि बनी रहे, भक्तों के महाराज के पारसवत् सान्निध्य में गहन शास्त्राभ्यास करके अपनी Fro श्रद्धाकेन्द्र बने रहे, जनमानस में आपकी आत्मशक्ति जागृत रहे। जन्मजात प्रतिभा को मणिकांचन योग प्रदान किया। गुरुदेव श्री _ जैसे सूर्य चन्द्र अखिल विश्व को दूर से ही प्रकाशित करते हैं, पुष्कर मुनिजी बहुश्रुत, बहुभाषी, प्रखर विद्वान थे जिनका प्राकृत, वैसे ही आप ज्ञान किरणों से अपने भक्तों के अंतर् मानस को संस्कृत, हिन्दी, गुजराती, मराठी, राजस्थानी प्रभृति अनेक भाषाओं आलोकित करें, अपने आशीर्वाद की छत्रछाया से आत्मशान्ति की पर पूर्ण अधिकार था। आपकी वाणी अपने विलक्षण ओज और प्रसादगुण से बच्चे, जवान, बूढ़े, नर और नारियों के चित्त को अनुभूति प्रदान करें, और संघ को शक्ति प्रदान करें, वटवृक्ष की तरह संघ को हराभरा, पल्लवित और सुगंधित करें। समान रूप से सहज आलोकित कर देती थी। आपके व्यक्तित्व में प्रभाव, मौलिकता, आकर्षण और रस का ऐसा अद्भुत सम्मिश्रण इस पावन अवसर पर मेरी प्रभु से यही प्रार्थना है कि आपकी था कि देखते ही बनता था। वाणी के साथ ही वे लेखनी के भी वरद छत्रछाया सदा हमारे पर रहे, और आपकी छाया में हम सदा धनी थे और साहित्य के क्षेत्र में उनकी सेवाएँ अमूल्य एवं आध्यात्मिक उत्कर्ष करते रहें। यही हार्दिक तमन्ना है कि आपका । अविस्मरणीय रहेंगी। विशेषतः जैन कथा साहित्य के प्रचार-प्रसार में मंगलमय आशीर्वाद सदा मुझे मिलता रहे। उनका योगदान हमारे लिए एक अनमोल थाती है। 36.9020900DOD.ED. 19983RD BADSDOG RDHDS S DODoorijanesbrary.ood BJan Education international SRCFor Private Personalise onePO400000000000NOTDADAR SO900202000 90099990000000000000000000016ARO
SR No.012008
Book TitlePushkarmuni Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni, Dineshmuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1994
Total Pages844
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size105 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy