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________________ 400-6000000CRORE S509005600-80052065 | श्रद्धा का लहराता समन्दर ওও हे उपाध्याय! हे महामुने! प-से पवित्रता अर्थात् जिसके मन-वचन-काय के योग पवित्र हैं उज्ज्वल यशगाथा जगत सुने तथा करण भी पवित्र हैं वह उन्नत है। तुम जंगम पुष्कर तीर्थ बने अ-अ-(आ) पवित्रता एवं उन्नति जीवन में आदि-अन्त तक है, महिमामण्डित थे स्नेह सने कहीं से भी देखो वही रूप मिलता है, कृत्रिमता नहीं होती है। जब जब आएगी हमें याद ध्-से अर्थ ध्वनित हो रहा है आत्मगुणों को धारण करना गूंजेगा मन में मधुर नाद और इसी में इस पद की गरिमा है, उन्नति है, पवित्रता है। जय उपाध्याय जय जय पुष्कर 'या' ने अपना रूप बताया, केवल अपने को याद रखो। यहाँ श्रद्धा प्रसून लो ज्योतिर्धर ! जो कुछ दिख रहा है वह सब कुछ तेरा नहीं है। ___'य'-पुनः य की ध्वनि से हम बोध पा रहे हैं कि उपर्युक्त गुणों [ उपाध्याय पुष्कर : बूंद में समाया सागर की महिमा यति धर्म की है। - इस उपाध्याय अक्षरों से किस प्रकार परिचित हो रहे हैं वही -साध्वी डॉ. सरोज श्री तो जीवन मिला था एक अद्भुत योगी को जिसका नाम बच्चे-बूढ़े-DOS 'उपाध्याय' यह वृहत् स्वरूप हमें देखना है, परखना है। पर जवान सभी को याद है। सभी को उस रूप की पहचान है। तीर्थों चहुँ ओर से, नीचे से ऊपर, ऊपर से नीचे, आस-पास देखना है, का तीर्थ, अहिंसा, संयम, तप की साकार प्रतिमूर्ति, प्रतिभा का कि यह क्या अनमोला रूप प्रत्यक्ष हुआ? ओज, वाणी का जादू, आदर्श व्यक्तित्व का वैभव वाला उपाध्याय lated पुष्कर मुनिराज। यह उपाध्याय पुष्कर श्रमणसंघ में, जन-जन में - महामंत्र पंच परमेष्ठी का यह एक पद है। इसकी गरिमा इसकी अमृत बाँटते कभी थकता नहीं था। महिमा स्व की है पर से कोई सम्बन्ध नहीं है। जो कुछ इसके पास है वह यहाँ से नहीं लिया, जन्म के साथ ही लाया था और साथ ही जिनके सत्यम्-शिवम्-सुन्दरम् से युक्त संस्मरण जन-जीवन को ले जाएगा। सत्यता तो यह है कहीं से आया नहीं और कहीं जाएगा प्रतिसमय सम्बोधि का अनुपम लाभ आज भी प्रदान कर रहे हैं। नहीं। जन्मना मिटना इसका स्वभाव नहीं है। इस उपाध्याय जीवन उपाध्याय पुष्कर मुनिराज की शिक्षा है उन्नति, पवित्रता, सत्यता, की कोई कथा कहानी नहीं। क्योंकि इस जीवन में सत्यता ही । यही जीवन जीने की निसरणी है। उन्होंने बताया कि इस निसरणी सत्यता है। यह स्वरूपमय है। कल्पना को तो इसका रूप दिखता ही। पर मैं चढ़ा था, अगर तुम भी चढ़ोगे तो पाओगे मुक्तिधाम। और 903 नहीं। । उन्होंने कहा था कि मुमुक्षु साधको! अपने आपका अध्ययन करने से उन्नति होती है। व्यक्तित्व श्रेष्ठ श्रेष्ठतर बनता हुआ ऊपर उठ उप+अध्याय जो स्व में अपने आपको विलीन कर ले वह जाता है। पवित्रता को अपना सकता है। उपाध्याय। ये उपाध्यायमय पुष्प आकाररूप में हमारे समक्ष नहीं हैं। इस उपाध्याय पद में कुछ सस्वर व्यंजन है और कुछ स्वर रहित व्यंजन है। और कुछ स्वर हैं। इन सभी वर्गों के समन्वय से । आकार स्थायी होता भी नहीं। किसी भी फूल ने स्थायी रूप पाया तथा समन्वय ध्वनि से गूंजन होती है। वह गूंजन वर्णों की भी नहीं लेकिन उसकी सुगन्ध सदा-सर्वदा सर्वत्र व्याप्त हो गई। वह विविधता में अपना एक रूप देती है। जो वर्ण अपने-अपने वर्ण से । | कभी समाप्त नहीं होती इसी प्रकार पुष्कर सुगन्ध हमने पायी। युक्त हैं लेकिन समन्वयात्मक ध्वनि से वह एक ही वर्ण के हो गये।। पुष्कर का अर्थ है बहुत, आदि अन्त रहित। वही यह पुष्कर है, यह उपाध्याय स्वरूप की गरिमा है कि आत्मा जब तक 'स्व' में 1 देखने वाले विविध हो गये पर यह पुष्कर वही है, कल भी वही था लीन नहीं थी तो बिखरी हुई थी। उसकी गूंज में, ध्वनि में। और कल भी वही रहेगा। इस फूल का नाम था “उपाध्याय श्री रचनात्मक वीर्य स्पष्ट नहीं हो रहा था। अनेकता में उसकी निजी पुष्कर मुनि जी महाराज"। इसकी गुण सुगन्ध ने दिग्-दिग्न्त में - पहचान नहीं हो रही थी। जब बिखरा रूप सिमट कर एक हो गया अपनी सौरभ से आनन्द उल्लास प्रदान किया था। आज भी मिल तो अनन्त-अनन्त गरिमा से सुसज्जित चमत्कारों के रूप से रूपायित । रहा है। होकर स्पष्ट हो गया। ____महिमामय आत्म पुष्कर तेरे पास पक्षपात नहीं है। तूने सुगन्ध सन उपाध्याय उ-प- अ - अ - ध् - या - य। लुटा दी अब कोई भी ले अतः मुझे भी यह सुगन्ध मिली। उसी को स्मरण करती हुई चन्द भावों को तेरे लिए प्रस्तुत कर रही हूँ। इस उपाध्याय के पद में उ-से हमें समझाया जाता है उत्तम बनो, उन्नति करो, ऊपर उठो। - an Education Interational 10209080500000. 00 For Private & Personal use only 903Pallars90246oSa PAGO3390 2000 .00Rasood DS 9 0wwwcainielbrary.org P4
SR No.012008
Book TitlePushkarmuni Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni, Dineshmuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1994
Total Pages844
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size105 MB
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