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________________ PORO । श्रद्धा का लहराता समन्दर ७९ आपश्री के बहुज्ञ शिष्यों में सूर्य चन्द्र के समान दो शिखरस्थ प्रमुदित प्रफुल्लित कर देती थी जैसे कुमुदिनी को चन्द्रकिरणें। नाम हैं : आचार्यप्रवर श्री देवेन्द्र मुनिजी म. सा. और कलम के आपश्री के शिष्यों की लम्बी सूची में उनके दो अनन्य शिष्य सूर्य GRA धनी ज्ञानज्योति श्री गणेश मुनिजी शास्त्री म., जो उनकी ज्योति और चन्द्र की भाँति जिन-शासन के गगनमण्डल में भासित हो रहे शृंखला को अक्षुण्ण धारण किये हुए हैं। हैं, और वे हैं आचार्य-प्रवर श्री देवेन्द्र मुनिजी म. सा. तथा लेखिनी _मैं अधिक पिष्टपेषण न करके अपनी अनन्त श्रद्धा और के धनी ज्ञानज्योति श्री गणेश मुनिजी शास्त्री। धन्यता के दो फूल ही उन उपाध्याय श्री की चरणवंदना में अर्पित गुरुदेव उपाध्याय श्री सागर के समान गम्भीर थे और उनके करती हूँ, जो जिनशासन के गगनमण्डल में सदा-सर्वदा भासित व्यक्तित्व के वैराट्य का अंकन करना मुझ सरीखी अल्पमति के रहेंगे। लिए कठिन अथच दुस्साध्य भी होगा। तथापि जैसे कोई अबोध बालक असीम प्रकाश को अपनी श्रमण-संघ के सत्यनिष्ठ सन्तरत्न भुजाओं की परिधि में समेटना चाहे, वैसे ही मैं भी श्रद्धातिरेक में गुरुदेव श्री के सम्बन्ध में कुछ कहने की धृष्टता करती हुई इन -साध्वी श्री मीना जी म. (एम. ए.) शब्दों में अपनी श्रद्धा-भावना व्यक्त कर रही हूँ(उप प्रवर्तिनी महा. श्री शशिकान्ता जी म. की सुशिष्या) आप बादल नहीं, स्वयं आसमान थे, भारतीय संस्कृति सन्तों की महिमा एवं उनके सद्गुणों की आप पुष्प नहीं, स्वयं ही उद्यान थे। गरिमा से सदैव अनुप्राणित होती रही है और उनके तप, त्याग एवं क्या कहने हैं आपकी योग साधना के, सर्वोच्च आत्म-साधना की ज्योति का अमर प्रकाश विश्व के आप पुजारी नहीं, स्वयं भगवान थे। जन-जन को मार्गदर्शन प्रदान करने के लिए प्रकाश-स्तम्भ बन गया है। यह वह प्रकाश है जो जीवन की यथार्थता एवं जीवन सत्यों को सतत् उद्घाटित करता रहता है। पुष्करणी में पुष्कर खिल गया भारत-भूमि का यह परम सौभाग्य है कि वह अमर ज्योति श्रृंखला कभी क्षीण नहीं हुई और महर्षियों, मुनियों, मनीषियों, -साध्वी श्री शोभा (जैन सिद्धान्ताचार्या) ANd सन्त-महात्माओं की एक अविच्छिन्न परम्परा यहाँ जीवन्त रही "पुष्करणी में पुष्कर खिला था, सौरभयी जिनकी महान। आयी। सर्वजन कल्याण एवं पतनोन्मुख समाज का उत्थान करने के ज्ञान-ध्यान-स्वाध्याय का ही, रहता था जिन्हें काम॥ लिए वे सदा अवतरित होते रहे और सत्य और अहिंसा का दिव्य ऐसे महर्षि गुणियों के गुण, गा और करे सन्मान। प्रकाश उन्होंने मन्द नहीं होने दिया। 'मित्ति मे सव्व भूए सु' का देवों में इन्द्र यूँ ऊँचे, शिष्य उनके “देवेन्द्र" भगवान ।। उदार सिद्धान्त उन्होंने ही किया और अखण्ड भ्रातृत्व और प्राणिमात्र से प्रेम करना समस्त विश्व को सिखाया। इन सन्तों ने ही भारत का पावन-पावत्र वसुन्धरा हमशा महापुरुषा स माडत मोक्ष और अक्षयसुख के द्वार सभी के लिए खोले। ऐसे ही एक रही है। यहाँ पर अनेकों महापुरुषों ने अपने जीवन के महान प्रातःस्मरणीय सन्त जो इसी बीसवीं शती में अवतरित हुए वे थे। आदर्शों से भूले-भटके पथिकों का पथ-प्रदर्शन किया। उन अध्यात्म-योगी उपाध्याय परम पूज्य गुरुदेव श्री पुष्कर मुनिजी महानात्माओं की पावन पंक्ति में परम श्रद्धेय ध्यान-योगी अध्यात्म महाराज, जो साक्षात् ज्ञानपुंज, गहन विचारक एवं महामनीषी थे। वेत्ता तत्त्वदर्शी श्री पुष्कर मुनिजी म. सा. का स्थान अनुपम है। आपने पूज्य गुरुदेव श्री ताराचन्द्र जी महाराज के पावन सान्निध्य में महर्षि-गुणज्ञ-गुरुवर्य श्री जी के पावन दर्शन चाहे उपलब्ध नहीं गहन एवं विस्तृत शास्त्राभ्यास किया। हुए, परन्तु जिस भी भव्यात्मा ने आपश्री जी के तेजोमय दिव्य प्राकृत, संस्कृत, हिन्दी, मराठी, गुजराती, राजस्थानी प्रभृति दर्शन पाये वह कृतकृत्य हो जाता था। आपका भव्य व्यक्तित्व बहुभाषी विद्वान इन मुनिश्री की वाणी में अद्भुत ओज, उत्कृष्ट आध्यात्मिक संयम-साधना, ज्ञान-ध्यान की आराधना, प्रासादिकता और प्रभावोत्पादकता का अक्षुण्ण प्रवाह था। जैन कथा विनम्रता से परिपूर्ण था। साहित्य के प्रसार-प्रचार में आपका योगदान अविस्मरणीय रहेगा श्री संघ में ऐसी महान-पुण्यात्मा विभूतियों का वियोग सहन और युगयुगों तक अद्वितीय रहेगा। आपके मुख का प्रभामण्डल करना और कमी को पूर्ण करना अति दुर्लभ ही नहीं, दुष्कर है। आबाल-वृद्ध, नर-नारी सभी को अपनी ओर सहज आकर्षित करता शासनेश प्रभु की अपार दया से शासन प्रभावक, साधु रल, था और बच्चे, बूढ़े, नर, नारी सभी उनके सान्निध्य में समान रूप आचार्य प्रवर श्री देवेन्द्र मुनि जी म. सा. जैसे महान् सुशिष्य की PP से धन्य होते थे। उनकी प्रभावभरी, रसभरी वाणी सभी को वैसे ही । संघ पर दीर्घकाल तक छत्रछाया बनी रहे और साधु-साध्वी, MEROINOORoooo oooooo CO.000000000025 26.000000000065DUKOOOGU099999.00.00 Flain-Education internatiogale S o Far Private Personal se chy 299840082900000 Posmeiameligay
SR No.012008
Book TitlePushkarmuni Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni, Dineshmuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1994
Total Pages844
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size105 MB
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