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________________ ६० दूसरों के लिए जीये, जो कार्य राजनीतिक दल करने में सर्वथा असफल रहे उस कार्य को आपने अपने उपदेश से कुछ क्षणों में करके दिखा दिया, थे सच्चे समाज सुधारक थे, अंत्योद्धारक और पतितोद्धारक थे। श्रद्धेय गुरुदेवश्री मानव हृदय के सच्चे पारखी थे, करुणा और दया की निर्मल स्रोतस्विनी थे, उनका अन्तर्-हृदय सदा आप्लावित रहता था, यही कारण है कि हजारों अजैनों ने आपके संपर्क में आकर व्यसनों से मुक्त जीवन जीने के लिए प्रतिज्ञा से आबद्ध हुए जो व्यक्ति प्रतिदिन ६०-७० बीड़ी, सिगरेट पीते थे उन्होंने एक बार के उपदेश से प्रभावित होकर सदा-सदा के लिए बीड़ी-सिगरेटतम्बाकू-पान पराग आदि दुर्व्यसनों का त्याग कर दिया था। हजारों व्यक्तियों ने गुरुदेवश्री के संपर्क में आकर जप साधना प्रारम्भ की थी, हजारों व्यक्तियों के जीवन का कायाकल्प हो गया था। दुर्गुणों के स्थान पर उनके जीवन में सद्गुण मंडराने लगे थे, वस्तुतः उपाध्यायश्री पारस पुरुष थे जो भी उनके संपर्क में आया उसका काला कलूटा जीवन स्वर्ण की तरह चमकने लग गया। आज भले ही सद्गुरुदेव की भौतिक देह हमारे बीच नहीं है, ज्यों-ज्यों उनके गुणों का स्मरण आता है। एक से एक परत उभरती चली जा रही है और मैं सोच रहा हूँ कि कितने महान् थे गुरुदेव, जिनका व्यक्तित्व महान् था और कृतित्व उनसे भी महानू था, जिसने आपके चिन्तन में डुबकी लगाई, वह सदा-सदा के लिए परिवर्तित हो गया। परिवर्तित ही नहीं, पवित्र भी हो गया, ऐसे गुरुदेव के चरणों में कोटि-कोटि वंदन, अभिनन्दन । कोहिनूर हीरे की तरह चमकता व्यक्तित्व -महासती चन्दनप्रभा जी म. (महासती सत्यप्रभा जी की सुशिष्या) भारतीय संस्कृति के अतीत के पृष्ठों का अध्ययन करने से सूर्य के प्रकाश की तरह यह स्पष्ट परिज्ञात होता है कि जब-जब संस्कृति में विकृति आई धर्म के नाम पर अधर्म पनपा, सदाचार के नाम पर पापाचार की अभिवृद्धि हुई तब विश्व में कोई विशिष्ट व्यक्ति समुत्पन्न हुआ, जिसने विश्व को एक नई दृष्टि दी, एक नया चिन्तन दिया और जन-जन के मन में आध्यात्मिक शक्ति का संचार किया, उस व्यक्ति को लोग महापुरुष या युगपुरुष की अभिधा प्रदान करते रहे हैं। उस युग पुरुष की परम्परा में परम श्रद्धेय उपाध्याय श्री पुष्कर मुनि जी म. का नाम अग्रगण्य रूप से लिया जा सकता है। भारत के अध्यात्मवादी चिन्तकों का यह अभिमत रहा कि बसर ने दुनिया को खोजा तो कुछ नहीं पाया पर खुद को खोजा तो बहुत कुछ पाया। खुद को खोजने का अर्थ है, अपनी अन्तत्मा उपाध्याय श्री पुष्कर मुनि स्मृति ग्रन्थ में डुबकी लगाना। मैं कौन हूँ? मेरा स्वरूप क्या है? और इस विराट् विश्व में मैं क्यों परिभ्रमण कर रहा हूँ? यदि इन प्रश्नों पर गहराई से व्यक्ति चिन्तन कर ले तो वह सब कुछ पा जाता है, "पहचान ले अपने को तो इन्सान खुदा है। गो जाहिर में है खाक मगर खाक नहीं है ।" देखने में तो बेशक इन्सान खाक का पुतला दृष्टिगोचर होता है। पर जब अन्दर की आँख से निहारते हैं तो उन्हें इस कंकर में भी शंकर छिपा नजर आता है। हम अनुभव करते हैं कि सूर्य स्वयं प्रकाश पुंज है, इसीलिए वह दूसरों को प्रकाश प्रदान करता है, फूल के कण-कण में सुगन्ध का भण्डार भरा है, तभी वह दूसरों को सुरभि प्रदान करता है, इसी तरह महापुरुष प्रकाशशील भी होते हैं और सौरभ के खजाने भी होते हैं, ये दूसरों को ज्ञान का प्रकाश भी देते हैं और संयम की सौरभ भी बाँटते हैं। उन्होंने संयम की साधना की, अहिंसा की आराधना की इसीलिए वे संसार को शांति और समता का उपदेश देते थे, प्रेम का पाठ पढ़ा सके। उपाध्याय पूज्य गुरुदेवश्री की वाणी में अद्भुत जादू था, ये चाहे महाराष्ट्र में पहुंचे, चाहे कर्नाटक में, चाहे तमिलनाडु में, चाहे आन्ध्र में, चाहे गुजरात में, चाहे राजस्थान में और चाहे उ. प्र. में उनकी तपःपूत वाणी को श्रवण कर जन-जन के मन में श्रद्धा का सरसब्ज बाग लहलहाने लगता था, भक्ति की भागीरथी प्रवाहित हो जाती थी, सेवा और समर्पण की सरस्वती का संगम हो जाता था, इसीलिए तो उनके चरणों में कोटि-कोटि वंदन है, अभिनन्दन है। हे युग पुरुष आपके जीवन का हर क्षण कोहिनूर हीरे की तरह चमकता, दमकता रहा। परोपकार के साक्षात् रूप आपके चरणों में हमारी भावभीनी वंदना । ध्यानयोगी -साध्वी श्री कुशल कुंवर जी म. जैन सिद्धान्ताचार्या' यह भारतवर्ष प्राचीन काल से ही मनीषियों का देश रहा है। ऋषभदेव, महावीर, बुद्ध आदि से लेकर आज तक अनेक ज्ञानी, ध्यानी, योगी, तपस्वी, ऋषि और महर्षियों ने जन्म लेकर इस धरा को पावन किया है। यह देश ऋषि प्रधान एवं कृषि प्रधान रहा है। सम्पूर्ण देश में ऋषि महर्षियों ने ज्ञान, दर्शन एवं चारित्र की त्रिवेणी को प्रवाहित व प्रसारित किया है। 7 भारतीय सभ्यता एवं संस्कृति के निर्माण में संत, ऋषि, महर्षियों एवं चिन्तकों का महान् योगदान रहा है। इस पायन भूमण्डल पर अनेक संतरत्न अवतरित हुए जिन्होंने अपना सर्वस्व त्याग कर सम्पूर्ण जीवन स्व तथा पर कल्याण में समर्पित कर दिया। इसी संत परम्परा में मेवाड़ रत्न उपाध्यायप्रवर पूज्य श्री पुष्कर मुनि जी म. थे। जिन्होंने देश-देश, नगर-नगर में भ्रमण कर Heilerppy www.dainelibrary.org
SR No.012008
Book TitlePushkarmuni Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni, Dineshmuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1994
Total Pages844
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size105 MB
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