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________________ ScienceRoad Media श्रद्धा का लहराता समन्दर सिद्ध जपयोगी उपाध्याय पूज्य गुरुदेव ) पुष्कर मुनिजी म. सच्चे संत रल थे। वे समाज में पनप रही बुराइयों को किस प्रकार सहन कर सकते थे। अतः उन्होंने अपने -महासती कौशल्या कुमारी (सज्जन शिष्या) प्रवचना क माध्यम से मानव समाज का प्रबल प्रेरण प्रवचनों के माध्यम से मानव समाज को प्रबल प्रेरणा प्रदान की कि वे बुराइयों से मुक्त बनें, बुराइयाँ प्रारम्भ में वामन की तरह लघु मानव एक सामाजिक प्राणी है, समाज का आलम्बन और रूप में दिखाई देती हैं पर एक दिन जब विराट रूप ग्रहण करती हैं सहयोग से वह सुखपूर्वक जीता है, आध्यात्मिक, नैतिक, तो फिर उन बुराइयों से मुक्त होना बहुत ही कठिन है, इसलिए 90193 पारिवारिक और सामाजिक-सांस्कृतिक अभ्युदय करता है। बिना प्रारम्भ में ही जीवन में प्रविष्ट न हों। अतः सतत् जागरूकता Sam एक दूसरे के सहयोग के जीवन यात्रा आनन्द और उल्लास के । अपेक्षित है। यही कारण है कि उपाध्याय पूज्य गुरुदेवश्री के पावन क्षणों में सम्पन्न नहीं हो सकती, मानव को कदम-कदम पर समाज प्रवचनों से उत्प्रेरित होकर हजारों व्यक्तियों ने बुराइयाँ छोड़ी और का सहारा लेना पड़ता है फिर भले ही वह एकान्त शांत स्थान पर सदा-सदा के लिए प्रतिज्ञाबद्ध होकर उन्होंने अनुभव किया कि जाकर रह जाए तो भी समाज से उसका संबंध पूर्ण विच्छिन्न नहीं । व्यसन से मुक्त होने पर जीवन का जो आनन्द है, वह बहुत ही हो सकता, स्थानांग सूत्र में भगवान महावीर ने कहा, साधक को अनूठा और निराला होता है। षट्कायिक जीव, गण, शासक, गृहपति और शरीर इन पाँचों का उपाध्याय पूज्य गुरुदेवश्री स्वयंसिद्ध जपयोगी थे और जो भी सहयोग साधना के अभ्युदय के लिए अपेक्षित है। उनके निकट संपर्क में आता, वे उसे जप जपने के लिए प्रेरणा मानवों का समूह ही समाज कहलाता है, जब मानव अवश्य प्रदान करते, हजारों युवकों ने उनकी प्रेरणा से नमस्कार सुव्यवस्थित रूप से संगठित बनता है, तब समाज कहलाता है। महामंत्र का जाप प्रारम्भ किया। नमस्कार महामंत्र पर गुरुदेवश्री की पशुओं का समूह समज है। समज में चिन्तन का अभाव होता है अपार आस्था थी, उनका यह मंतव्य था कि अन्य जितने भी मंत्र हैं जबकि मानव में चिन्तन की प्रमुखता होती है, जीवन को विशुद्ध वे मंत्र सविधि जप न करने पर हानि भी कर सकते हैं पर 909 बनाने के लिए मानव प्रतिपल प्रतिक्षण चिन्तन करता है। महापुरुष नमस्कार महामंत्र ऐसा महामंत्र है जो माँ के दूध की तरह है जो वह है जो समय-समय पर किन्हीं कारणों से वातावरण में विकृति किसी भी साधक को हानि नहीं करता, उसे लाभ ही लाभ होता है आती है, दुर्व्यसनों के दूषण समुत्पन्न हो जाते हैं, अनेक रूढ़ियाँ और हमने यह भी अनुभव किया कि गुरुदेवश्री के निर्देश के पनपने लगती हैं, तब महापुरुष समाज में फैली हुई बुराइयों को अनुसार जप करने वाले की शारीरिक, मानसिक सभी प्रकार की नष्ट करते हैं और समाज का स्वच्छ वातावरण निर्मित करते हैं, व्याधियाँ और उपाधियाँ नष्ट हो जाती हैं और उन्हें अपूर्ण समाधि समाज में सत्ता, संपत्ति और पद प्रतिष्ठा के कारण अहंकार के प्राप्त होती है। काले नाग कई बार फन फैलाकर खड़े हो जाते हैं, जिससे समाज दूषित और भ्रमित हो जाता है। ऐसे समाज को पूर्ण विशुद्धता प्रदान श्रद्धेय सद्गुरुवर्य के गुणों का उत्कीर्तन किन शब्दों में किया करने का दायित्व महापुरुषों का होता है, वे समाज में फैले हुए। 1 जाए। वे आलोकस्तम्भ की तरह, जन-जन को सदा प्रेरणा प्रदान कलुषित वातावरण को देखते नहीं किन्तु उस वातावरण को विशुद्ध करते रहे, उनका विमल जीवन सभी के लिए प्रेरणा स्रोत रहा,तता बनाने का प्रयास करते हैं। भले ही वे आज भौतिक देह की दृष्टि से हमारे बीच नहीं हैं किन्तु उनका गरिमामय पूर्ण यशस्वी जीवन हम सभी के लिए सदा सर्वदा महापुरुष समाज में ही पैदा होते हैं, समाज में ही रहते हैं और आलोक प्रदान करता रहेगा। समाज में जो उद्दण्डता, उच्छृखलता, असात्विकता और कुसंस्कार जब अधिक मात्रा में पनपने लगते हैं तो वे अपने प्रतापपूर्ण प्रतिभा से उन्हें नष्ट करते हैं। [तप और त्याग के साकार रूप : उपाध्यायश्री आज समाज में चारों ओर फूट, वैमनस्य, चोरी, दुर्व्यसन, -महासती स्नेहप्रभा विकार, शिकार, जुआ, कुरूढ़ियाँ, पान पराग, जर्दा, तम्बाकू, (महासती कौशल्या जी की सुशिष्या) शराब, माँस आदि अनेक दुर्गुण इतनी अधिक मात्रा में पनप रहे हैं यदि उन पर नियंत्रण नहीं किया गया तो वह दिन दूर नहीं जिस परम श्रद्धेय उपाध्याय श्री पुष्कर मुनि जी म. अपने युग के दिन मानव और पशु में कुछ भी अन्तर नहीं रह जाएगा। आज का एक महान् तत्वदर्शी महापुरुष थे, उनके विचार उदार और परम मानव दानव बनता जा रहा है, वह दुर्गणों के चंगुल में बुरी तरह। पवित्र थे। उनका आचार उत्कृष्ट था, उनकी वाणी मधुर और प्रिय फंस रहा है, जिससे समाज परेशान है, राष्ट्र हैरान है, परिवार में थी। उन्होंने स्वयं ज्ञान की साधना की और दूसरों को भी खुलकर 904 विषमता की ज्वालाएँ धधक रही हैं, उन ज्वालाओं को नष्ट करने ज्ञान का दान प्रदान किया, उन्होंने अध्ययन-अध्यापन के क्षेत्र में DSS के लिए संतगण सदा प्रयत्नशील रहे हैं, परम श्रद्धेय उपाध्यायश्री जितना कार्य किया, उसका वर्णन कर सकना सहज कार्य नहीं है, 2003030030hcoooooo 2050danieristina.ooDUSSOOGGore2050666 2005.000000000024tato0%a6e2000Rato20 6960209600%606ForPrivate Persohalause OhiyaDO 3.90. sampaideuorary.org
SR No.012008
Book TitlePushkarmuni Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni, Dineshmuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1994
Total Pages844
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size105 MB
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