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________________ 1000RRRR 200 उपाध्याय श्री पुष्कर मुनि स्मृति-ग्रन्थ । उनकी दृष्टि बहुत ही विराट और व्यापक थी उनके लिए कोई और साधना का जीता जागता रूप था। वे ज्ञान, प्रतिभा और पराया नहीं था, वे सभी को समान दृष्टि से देखते थे, यह उनका । पौरुष के बल पर महान् बने थे उन जैसे तेजस्वी व्यक्ति तथा सहज और स्वाभाविक सद्गुण था। धर्म-दर्शन-व्याकरण-न्याय और | एकनिष्ठ साधक किसी भी समाज या राष्ट्र में युगों के पश्चात् हुआ 500 आगम के आप प्रकाण्ड पंडित थे। संस्कृत, प्राकृत, अपभ्रंश जैसी करते हैं जो प्रसुप्त मानव समाज में और राष्ट्र में जन चेतना का 900 प्राचीन भाषाओं के आप सहज विद्वान थे। शास्त्र चर्चा में परम दक्ष शंखनाद फूंकते हैं और अपने जाज्वल्यमान प्रदीप्त और ओजपूर्ण 38थे। आपकी प्रवचन कला श्रोताओं को मंत्रमुग्ध करने वाली थी, व्यक्तित्व और गुरु गम्भीर पौरुषमय वाणी से जन-जन को 26 आपके सद्गुणों का वर्णन करना कहाँ तक संभव है तथापि संक्षेप झकझोरते हैं, सजग और सावधान करते हैं। में यों कहा जा सकता हैDOD श्रमण संस्कृति यम, नियम, संयम की संस्कृति है, अध्यात्म की 1 श्रद्धेय उपाध्यायश्री अपने युग के एक जाने माने संतरत्न थे। । संस्कृति है। तप, त्याग और विराग की संस्कृति है, जिस संस्कृति ने 28 जप, तप और ज्ञान साधना के साथ ही साथ जन-जन का कल्याण मानव मूल्य की प्रतिष्ठा की, जिसने इसी कसौटी पर मानव को करना और उस जन मंगलकारी कार्य का उदात्त रूप से प्रसार कसा है, जो इस कसौटी पर खरा उतरा वही व्यक्ति महतोमहीयान कम करना आपके जीवन का एक लक्ष्य था। सद्भाव, सदाचार, स्नेह, माना गया है। यदि संत के जीवन में संयम, तप और त्याग का बल DD सहयोग, सहिष्णुता और शुद्धात्मवाद आदि ऐसे सद्गुण थे जिन नहीं है, वैराग्य का पयोधि उछालें नहीं मार रहा हो, कष्ट 35 सद्गुणों में वे जीए और दूसरों को जीने की प्रेरणा प्रदान करते । सहिष्णुता का अभाव है तो वह व्यक्ति युग नायक, युगद्रष्टा, युग SAD रहे। अंधविश्वास, अंधपरम्परा, रूढ़िवाद, जातिवाद, स्वार्थान्धता, ऋषि-महर्षि और सच्चा गुरु नहीं बन सकता। ऊँच-नीच की विषमतापूर्ण वार्ताओं से आप सदा दूर रहे। आपने जैन संस्कृति ने उसी को धर्म गुरु के पद पर प्रतिष्ठित किया, सदा ही मिथ्यात्व का खण्डन किया और सद्भावों का प्रचार-प्रसार जिनके जीवन में त्याग और वैराग्य था। उपाध्याय श्री पुष्कर किया। जन-जन को यह प्रेरणा दी कि वे सामाजिक कुरीतियों से मुनिजी म. के जीवन में ज्ञान-दर्शन और चारित्र की त्रिवेणी बचें। धार्मिक समन्वय नैतिकोत्थान के लिए और श्रमण संस्कृति के प्रवाहित थी, इसीलिए वे सच्चे गुरु थे, उन्होंने तत्व ज्ञान को बांटा। प्रचार और प्रसार के लिए लगभग ६० हजार कि. मी. की पैदल वे गुरु थे, उन्होंने जन-जन के मन में ज्ञान की ज्योति जगाई, वे यात्राएँ कीं। धार्मिक, दार्शनिक, सांस्कृतिक, विविध विषयों पर गुरु थे उन्होंने अपने आपको तिराया और दूसरों को भी पार का जब आप प्रमाण पुरस्सर प्रवचन करते थे तो श्रोता मंत्रमुग्ध हो लगाया। जाते। आपके प्रवचनों में सहजता थी, सरलता थी, लोकभोग्य दृष्टान्तों की प्रधानता होती थी, गंभीर से गंभीर विषय को सरल "जो सीखो, किसी को सिखाते चलो। 6 रूप में प्रस्तुत करने में आप कुशल थे। आपका यह अभिमत था । दिए से दिए को, जलाते चलो।" कि प्रवचन जो हम करते हैं, उसमें पांडित्य प्रदर्शन करना हमारा महापुरुष वह है जो अपने पीछे पावन प्रेरणा का प्रसाद छोड़ उद्देश्य नहीं होना चाहिए किन्तु जन-जन के अन्तर्मानस में । जाता है, उस महागुरु के चरणों में भावभीनी श्रद्धांजलि - सद्भावनाएँ उबुद्ध करना हमारा उद्देश्य होना चाहिए। बुराइयों के । अर्पित करते हुए अन्तर् मानस से गद्गद होकर ये स्वर झंकृत हो चंगुल से बचाना हमारा लक्ष्य होना चाहिए। रहे हैं 20 देश की दुर्दशा को देखकर श्रद्धेय उपाध्यायश्री जी की लेखनी "चुप है, लेकिन सदियों तक गूंजेगी सदाए साज तेरी। Y और वाणी उस दिशा में प्रवाहित हुई और उन्होंने अपना सम्पूर्ण दुनिया को अँधेरी रातों में ढाढस देगी आवाज तेरी॥" जीवन "सत्यं शिवं सुन्दरम्” के लिए समर्पित कर दिया। आज उनकी भौतिक देह हमारे बीच नहीं है किन्तु उनका स्वर्णिम जीवन तब हमारे लिए सदा पथ प्रदर्शक रहेगा, उनके चरणों में भावभीनी आध्यात्मिक पुरुष श्रद्धांजलि। -महासती सुदर्शन प्रभा (महासती कौशल्या जी की सुशिष्या) संयम के सुमेरू : उपाध्यायश्री पुष्कर मुनि भारतीय पावन पुण्य धरा पर अनेक विमल विभूतियाँ हुई हैं -साध्वी संयमप्रभा जिन्होंने अपने ज्ञान, त्याग और तपोमय जीवन से भारत के नाम (महासती श्री कौशल्या जी की सुशिष्या) को सदैव रोशन किया है। ऐसी ही चंद महान् विभूतियों की पंक्ति उपाध्याय पूज्य गुरुदेव श्री पुष्कर मुनिजी म. सा. विश्व की । में श्रद्धेय उपाध्याय पू. गुरुदेवश्री पुष्कर मुनि जी म. का नाम उन विमल विभूतियों में से थे जिनका जीवन संयम, त्याग, तप सहज ही अंकित किया जा सकता है, उन्होंने अपने त्याग, तप, R P alaantegonali86 DEEP B orivate Personal use only 390655DJanwar owranelibrary.orget
SR No.012008
Book TitlePushkarmuni Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni, Dineshmuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1994
Total Pages844
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size105 MB
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