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________________ अभिनन्दन-पुष्प विलक्षण प्रतिभा के धनी : श्री कस्तूरचन्द जी महाराज 0 देवेन्द्र मुनि शास्त्री परमादरणीय मालवरत्न उपाध्यायप्रवर स्थविर पदालंकृत श्री कस्तूरचन्द जी महाराज स्थानकवासी जैन समाज के एक वरिष्ठ सन्त रत्न हैं। उनमें विलक्षण प्रतिभा, प्रत्युत्पन्नमतित्व, दूरगामी दृष्टि और त्वरित निर्णय करने की शक्ति के कारण वे जन-जन के आदर पात्र बन गये हैं। कस्तूरी की मीठी और मधुर महक से जनता जनार्दन का हृदय आहलादित हो जाता है वैसे ही आपश्री के सद्गुणों की मधुर सौरभ से मुग्ध ही नहीं किन्तु जैन समाज अपने आपको धन्य अनुभव कर रहा है। जैन आगम साहित्य में स्थविर को भगवान की उपमा प्रदान की गई है। 'थेरा भगवन्तो' कहकर उसकी गौरव-गाथा के गीत गाये गये हैं। वह स्वयं ज्ञान-दर्शनचारित्र में स्थिर होता है और जो भी उसके सम्पर्क में आता है, उसे भी वह स्थिर करता है। इसीलिए आगमों में स्थविरों से पढ़ने का वर्णन मिलता है जिससे साधना के क्षेत्र में कभी भी विचलित नहीं हो सके। परम श्रद्धेय श्री कस्तूरचन्द जी महाराज स्थविर ही नहीं, महास्थविर हैं-वे ज्ञानस्थविर हैं। जब भी कोई साधक उनके पास बैठता है, तब वे ज्ञान की चर्चा करते हैं। उसे जैनधर्म का महत्व बताते हैं। ___मैंने आपश्री के दर्शन कब किये यह निश्चित तिथि बताना सम्भव नहीं है, पर जहाँ तक मेरी स्मृति है, मैंने आपके दर्शन गृहस्थाश्रम में बहुत ही छोटी उम्र में उदयपुर में किये थे। मेरी पूजनीया मातेश्वरी तीजबाई जो उस समय वैराग्य अवस्था में थी, जिनका वर्तमान में नाम महासती प्रभावतीजी है, उनके साथ आपके दर्शनार्थ गया था। माताजी को स्तोक साहित्य का बहुत ही गहरा अध्ययन था। उस समय उन्हें लगभग ढाई सौ-तीन सौ थोकड़े आते थे। अतः आपश्री ने माताजी से अनेक प्रश्न किये और उनसे सही उत्तर सुनकर आपश्री ने आशीर्वाद भी प्रदान किया कि तुम दीक्षा लेकर खूब ही धर्म का उद्योत करोगी। माताजी महाराज ने आपसे ज्योतिषचक्र व खण्डा-जोजन आदि थोकड़ों के रहस्यों को भी समझा। माताजी ने परम विदुषी साध्वीरत्न श्री सोहन कुंवर जी महाराज के पास दीक्षा ग्रहण की और मैंने महास्थविर श्री ताराचन्दजी महाराज व राजस्थान केसरी, अध्यात्मयोगी उपाध्याय श्री पुष्कर मुनिजी महाराज के पास आहती दीक्षा ग्रहण की। दीक्षा के पश्चात् जब मैंने आपके दर्शन किये तब आपने मुझे बालक होने के नाते से अनेक शिक्षाप्रद चित्र दिये, जो आज भी मेरे पास सुरक्षित हैं। सादड़ी-सोजत और अजमेर शिखर सम्मेलन में भी आपके दर्शनों का सौभाग्य मिला । पर सम्मेलन के भीड़-भड़क्के पूर्ण वातावरण में आपसे कोई विशेष चर्चा आदि नहीं हो सकी। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012006
Book TitleMunidwaya Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRameshmuni, Shreechand Surana
PublisherRamesh Jain Sahitya Prakashan Mandir Javra MP
Publication Year1977
Total Pages454
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size10 MB
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