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________________ ४८ मुनिद्वय अभिनन्दन ग्रन्थ उदार हृदयी के चरणों में - केवल मुनि कवि बंशी मुनि दिल्ली में बीमार थे, उन दिनों उपाध्याय मालव रत्न श्री कस्तूरचन्द जी महाराज का वर्षावास दिल्ली में था। तब आपकी सेवा करने का, दर्शन करने का एवं आपको निकटता से देखने का मुझे प्रथम अवसर प्राप्त हुआ था। यों तो आपके तेजोमय संयमी जीवन में अगणित विशेषताएँ रही हुई हैं। परन्तु कुछ विशेषताएँ महत्त्वपूर्ण एवं उल्लेखनीय हैं। आपके पास हस्तलिखित साहित्य का खासा भंडार था। जो कुछ वर्षों पहले जयपुर के ज्ञान भण्डार को उपहार के रूप में उदारतापूर्वक आपने प्रदान किया है। व्याख्यानोपयोगी रचनाएँ भी आपके पास बहुत हैं। उन्हें आप उदारतापूर्वक दिखाने में एवं लिखाने में सदैव तत्पर रहते हैं। इतना ही नहीं आपकी यह आंतरिक इच्छा रही है कि-संग्रहीत भजन, कविता, लावणिएँ, श्लोक एवं अन्य रचनाएँ अधिकाधिक साधु-साध्वी एवं प्रबुद्ध वर्ग के हाथों में पहुँचे उतना ही अच्छा है । अतएव आपका उपयोगी संग्रह-सामग्री कूप का जल नहीं सरिता का जल है। साधर्मी सहायता पहुँचाना यह दूसरी विशेषता है। आपके प्रभावशाली प्रवचनों के प्रभाव से समाज के कई गुप्तदानी हजारों रुपयों की सहायता सैकड़ों भाई-बाइयों को पहुँचाने में आज भी सक्रिय हैं। यह मालव रत्न श्री जी के उदारता का ही प्रभाव है। । उनके बहत्तर वर्षीय संयमी जीवन का समाज-संघ द्वारा जो अभिनन्दन किया जा रहा है। इस शुभावसर पर उनके उक्त गुणों का हार्दिक अभिनन्दन करते हुए मुझे भी प्रसन्नता हो रही है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012006
Book TitleMunidwaya Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRameshmuni, Shreechand Surana
PublisherRamesh Jain Sahitya Prakashan Mandir Javra MP
Publication Year1977
Total Pages454
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size10 MB
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