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________________ २६६ मुनिद्वय अभिनन्दन ग्रन्थ प्रचार-प्रसार केवल जनता में ही नहीं था, अपितु शासकों एवं शासन के प्रमुख अधिकारियों ने भी (इनमें दीक्षित होकर ) इन सम्प्रदायों को गौरवान्वित किया था । यह सहज गम्य है कि मालवा में जैनों का प्रमुख स्थान रहा है । समय-समय पर यहाँ पर्याप्त मात्रा में जैन धर्म का प्रचार-प्रसार हुआ एवं हजारों साधु-सन्तों ने यहाँ की धरती को पावन किया है। भगवान महावीर यहाँ पधारे थे तथा जैन पुराणानुसार जैन-धर्मं विषयक अनेक घटनाएं भी इस पुण्य भूमि पर घटित हुई हैं। यहाँ का सती दरवाजा एक जैन नारी के सतीत्व की सफल परीक्षा से सम्बन्धित है । मैनासुन्दरी ने विधिवत् नवपद ( नमो अरिहंताणं, नमो सिद्धाणं, नमो आयरियाणं, नमो उवज्झायाणं, नमो लोए सव्वसाहूणं, नमो नाणस्स, नमो दंसणस्स, नमो चरितस्स, नमो तस्स) की आराधना करके अपने पति श्रीपाल का कोढ़ दूर किया था । इस प्रकार की अनेक जैन धार्मिक आस्थाएँ मालव से जुड़ी हुई हैं। उज्जैन, मक्सी- पार्श्वनाथ, धारानगरी, मांडव दशपुर इत्यादि अनेकों जैन तीर्थ हैं जो श्रमण संस्कृति के सजीव प्रतीक रहे हैं । जहाँ भव्यात्माएँ धर्माराधना करके जीवन को सफल बनाते हैं । धार्मिकता के चिरनिनादित स्वरों के ये गौरवमय माध्यम धर्म शब्द "घृ" धातु से बना है जिसका अर्थ है-धारण या पालन करना । किन्तु प्राचीन वैदिक साहित्य के अनुशीलन से प्रगट होता है कि इसका प्रयोग अनेक अर्थों में होता आया है। किन्तु अधिक स्थानों में धार्मिक विधियों और धार्मिक क्रिया संस्कारों के रूप में ही प्रयुक्त हुआ है । धर्म का लक्षण है अभ्युदय और निःश्रेयस की प्राप्ति वह प्राप्ति जिसके द्वारा हो सकती है, वही धर्म है । महाभारत में 'अहिंसा परमो धर्म:' ( अनुशासन पर्व ) अनृशस्य परमोधर्म: (वनपर्व ३७३, ७६ ) अहिंसा परम धर्म है । दया परम धर्म कहा गया है । जैनधर्म में भी धर्म के निम्न लक्षण बताये गये हैं- धर्म उत्कृष्ट मंगल है | अहिंसा, संयम १ इस सन्दर्भ में निम्न ग्रन्थ विशेषतः पठनीय हैं : १ मालव : एक सर्वेक्षण २ उज्जयिनी का सांस्कृतिक इतिहास ३ उज्जयिनी में वैष्णव धर्म ४ प्राचीन एवं मध्यकालीन मालवा में जैनधर्म ५ उज्जयिनी दर्शन ६ विक्रम स्मृति ग्रंथ ७ संस्कृति केन्द्र उज्जयिनी ८ राजेन्द्र सूरि स्मारक ग्रन्थ ६ मालव में युगान्तर १० जैन साहित्य का इतिहास Jain Education International (सं० डा० वि० श्री वाकणकर) (डा० शोभा कानूनगो) (डा० एलरिक बारलो शिवाजी) (डा० तेज सिंह गौड ) (डा० सूर्य नारायण व्यास ) (डा० रमाशंकर त्रिपाठी) ( पं० व्रज किशोर ) ( अगरचंद नाहटा ) (डा० रघुवीरसिंह) ( नाथूराम प्रेमी ) For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012006
Book TitleMunidwaya Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRameshmuni, Shreechand Surana
PublisherRamesh Jain Sahitya Prakashan Mandir Javra MP
Publication Year1977
Total Pages454
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size10 MB
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