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________________ मालव संस्कृति में धार्मिकता के स्वर २६७ और तप ये धर्म के लक्षण हैं। जिसका मन सदा धर्म में लगा रहता है उसे देवता भी नमस्कार करते हैं । ' आचार्य कुन्दकुन्द ने भी 'चारितं खलु धम्मो ' ( प्रवचनसार) और 'धम्मो दया विसुद्धो' (बोध पाहुड २५) चारित्र ही निश्चय में धर्म है । इस प्रकार धर्म का विविध स्वरूप कहा है । आचार्य समन्तभद्र ने अपने रत्नकरंड श्रावकाचार में धर्म का जो स्वरूप बतलाया है वह इस प्रकार है जो कर्म बन्धन का नाशक है, और प्राणियों को संसार के दुःखों से छुड़ाकर उत्तम सुखों में स्थापित करता है । उक्त कथन से नीचे लिखे तथ्य उद्घटित होते हैं (१) संसार में दु:ख है, जिसे सुख कहा जाता है या माना जाता है, वह सुख वास्तविक सुख नहीं है यद्यपि उसे सुख की संज्ञा दी जाती है तब भी वह उत्तम सुख नहीं है । (२) संसार के दुखों से छुटकारा और उत्तम सुख की प्राप्ति कर्म बन्धन का नाश किये बिना सम्भव नहीं है । (३) अतएव सच्चा धर्म वही है जो कर्म बन्धन का नाशक है । जिससे कर्म बन्धन होता है, वह सच्चा धर्म नहीं है । (४) अत: धर्म से सच्चा धर्म जुदा ही है । धर्म नाम से ही प्रत्येक धर्म सच्चा धर्म नहीं माना जा सकता । धर्म शब्द की व्युत्पत्ति और यह व्याख्या सर्वाचार्य सम्मत जैन व्याख्या है । शेष सब व्याख्याएँ प्रकारान्तर से उसी का पोषण करती हैं ! 3 इन पृष्ठों में इन्हीं साधनों एवं माध्यमों की संक्षिप्त चर्चा की जा रही है जो धार्मिकता के स्वरों को मुखरित करते हैं, वे निम्न हैं (१) व्रतोत्सव एवं अनुष्ठान । (२) देव - गुरु- धर्मोपासना एवं वंदना-अर्चना आदि । (३) सामायिक तथा प्रतिक्रमण । (४) पर्व आदि दिनों में धार्मिक एवं सांस्कृतिक आयोजन | (५) धार्मिक कथा पठन एवं श्रवण । (६) अणुव्रत एवं महाव्रत समारोह (दीक्षा) । (७) शास्त्र स्वाध्याय, चिंतन एवं मनन । (८) विविध प्रत्याख्यान । १ धम्मो मंगल मुक्कट्ठ, अहिंसा संजमो तवो । देवा वि तं नमसंति, जस्स धम्मे सया मणो ॥ २ देशयामि समीचीनं, धर्मकर्म निवर्हणम् । संसार दुःखतः सत्त्वान् यो धरत्युत्तमे सुखे || पं० कैलाशचन्द्र शास्त्री सिद्धान्ताचार्य ३ Jain Education International धर्म शब्द का स्वरूप और व्याख्या For Private & Personal Use Only ( दशवं ० १1१ ). - रत्नकरंड आवकाचार - जैन सिद्धान्त भास्कर www.jainelibrary.org
SR No.012006
Book TitleMunidwaya Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRameshmuni, Shreechand Surana
PublisherRamesh Jain Sahitya Prakashan Mandir Javra MP
Publication Year1977
Total Pages454
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size10 MB
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