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________________ १२२ मुनिद्वय अभिनन्दन ग्रन्थ मेरे परम सहयोगी 0 मुनिश्री प्रतापमलजी महाराज ____ मैं वि० सं० १९७६ के चातुर्मासकाल दीक्षा का संयोग बहुत ही सुन्दर रहेगामें वैराग्य भाव से ओत-प्रोत होकर देवगढ़ क्योंकि इनकी (हीरालालजी) उम्र (मदारिया) से लसानी धर्म-ध्यानार्थ पहुँच और मेरी उम्र समान है। दोनों का गया। क्योंकि उस समय वहाँ जैनाचार्य अध्ययन साथ ही चलता रहा । वहाँ तीनों श्री खूबचन्दजी महाराज के सुशिष्य दीक्षा एक साथ करने की बात चल रही थी, श्री हर्षचन्द जी महाराज ठा० २ का किन्तु पारिवारिक मोहबन्धन से ऐसा न वर्षावास था। हो सका, आखिर मृगसर शुक्ला पूर्णिमा ___वहाँ जाकर मैंने धर्म-ध्यान-सामायिक- वि० सं० १९७६ की शुभ वेला में गुरु प्रवर संवर, तप-जप के साथ-साथ श्रमण सूत्र श्री नन्दलालजी महाराज के वरदहस्त का अभ्यास भी प्रारम्भ कर दिया। कुछ से मेरी दीक्षा सम्पन्न हुई। और आप दोनों दिन ऐसा क्रम चलता रहा, उसके बाद मैं (पिता-पुत्र) की दीक्षा वि० सं० १९७६ वहाँ से वि० सं० १९७६ आसोज शुक्ला माघ शुक्ला ३ शनिवार को रामपुरा नगर दसमी के दिन गुरुदेव श्री नन्दलालजी में सम्पन्न हुई। महाराज एवं उपाध्याय श्री कस्तूरचन्दजी क्रमशः हम दोनों मुनियों का आगममहाराज की सेवा में दीक्षा ग्रहण करने वाचन, अध्ययन, विहार यात्रा, अनेक की प्रबल भावना से मन्दसौर पहुँच वर्षावास साथ-साथ सम्पन्न हुए। आपके गया। इस अपूर्व सहयोग से मेरी साधना को भी ___ वहाँ जब मैं पहुँचा तो मेरे हर्ष का बहुत बल मिलता रहा। आज वही मेरे पार नहीं रहा; क्योंकि मुझे मालूम हुआ, परम सहयोगी श्री हीरालालजी महाराज और मैंने देखा कि गुरुदेवश्री की सेवा में श्रमण संघ में प्रवर्तक पद को विभूषित सेठ श्री लक्ष्मीचन्दजी दूगड़ तथा उनके कर रहे हैं। मैं मंगल कामना करता हूँ सुपुत्र श्री हीरालाल जी दीक्षा की शुभ- कि आप दीर्घायु बनकर समाज को कामना को लेकर श्रमण सूत्र का अध्ययन धर्मोपदेश एवं साहित्य के माध्यम से मार्गकर रहे हैं । मैंने विचार किया कि यह दर्शन देते रहें। प्रवर्तक श्री हीरालालजी महाराज 7 श्री मनोहरलालजी महाराज ___ स्व० आचार्य श्री मन्नालालजी इधर स्व० आचार्य श्री खूबचन्द जी महाराज अपनी शिष्य मण्डली सहित महाराज अपने शिष्य परिवार से पधार सम्वत् १९९७ का उदयपुर का चातुर्मास कर पूज्य श्री के दर्शन नीमच में किये। पूर्णकर अनेक ग्राम नगरों को पावन करते उस समय पं० रत्न श्री हीरालालजी हुए नीमच पधारे। महाराज के मुझे प्रथम दर्शनों का सौभाग्य Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012006
Book TitleMunidwaya Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRameshmuni, Shreechand Surana
PublisherRamesh Jain Sahitya Prakashan Mandir Javra MP
Publication Year1977
Total Pages454
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size10 MB
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