SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 105
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ८० मुनिद्वय अभिनन्दन ग्रन्थ हे गणाधीश ! आपकी सबल व प्रबल प्रतिभासम्पन्न भुजाओं में व आपकी अन्तरात्मा में कुदरत ने वह शक्ति- वह बल इस प्रकार समर्पित कर दिया है कि आप एक वरिष्ठ बलिष्ठ सुशासक योद्धा की तरह एक विराट विशाल साधु श्रावक समुदाय का अपनी विलक्षण सूझ-बूझ व निर्मला - विमला मेधा से सफलतापूर्वक नेतृत्व व मार्गदर्शन प्रस्तुत कर रहे हैं । तात्पर्य यह है कि आपकी सरलता - उदारता, विशाल भाव, ऋजुता आदि गुण गरिमा- महिमा की शीतल छाया में आज श्रद्धाशील चतुर्विध संघ दिनोंदिन प्रगति के पवित्र पुंज स्वरूप पथ पर गतिमान हो रहा है । हे ज्योति पुत्र ! मालवरत्न परम श्रद्धेय गुरुदेव श्री कस्तूरचन्द जी महाराज के अमृत व्यक्तित्व की ज्योति से आज का प्रतिपल प्रकाशित हो रहा है । इस अमृत ज्योति की संजीवनी रसायन से हम आपके अनुयायी शिष्य उल्लसित रूप से अनुप्राणित होते आये हैं । अतः आज आपके सान्निध्य में आपके ही अमृत महोत्सव पर उपस्थित मुनि समुदाय अपनी भावांजलि के पावन प्रतीक स्वरूप " शासन सम्राट" के सम्मानित पद से विभूषित करते हैं । दिनांक - ३ मई, १९७१ नीमचौक, रतलाम ( म०प्र०) Jain Education International For Private & Personal Use Only हम हैं आपके 5कृपापात्र सन्तवृन्द www.jainelibrary.org
SR No.012006
Book TitleMunidwaya Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRameshmuni, Shreechand Surana
PublisherRamesh Jain Sahitya Prakashan Mandir Javra MP
Publication Year1977
Total Pages454
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy