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________________ अभिनन्दन - पुष्ष मालवरत्न ज्योतिर्धर गुरुदेव श्री कस्तूरचन्द जी महाराज के पवित्र कर-कमलों में समक्ति समर्पित श्री श्रमण अभिनन्दन-पत्र ७६ हे महामालव के महामहिम ! इतिहास सुप्रसिद्ध धवला - अमला मनोहर धरा ने समय-समय पर एक-दो नहीं, अपितु अगणित सहस्रों-लाखों कर्मठ कर्मवीर व धर्मवीर ज्योतिर्धर - निष्णात पुत्ररत्नों को जन्म देकर देश, समाज, संघ का बहुत बड़ा हित किया है । अतएव मालव माँ अपने सुयोग्य लाड़ले पुत्रों के सद्ज्ञान व सच्चरित्र से आज गौरवान्वित हो रही है । तदनुसार जावरा की रम्य भव्य - मनोरमा स्थली भी आज गुरु भगवंत के चमकते-दमकते व महकते संयमी जीवन से महक रही है, मुस्करा रही है । हे वात्सल्यावतार ! सुमन पराग जिस प्रकार सरस सुगन्ध से सुगन्धित रहता है उसी प्रकार श्रद्धेय गुरुवर का स्फटिक रत्न - रश्मि सादृश्य शुद्ध-विशुद्ध हृदय वात्सल्य की पवित्र पावनी मन्दाकिनी से सदा-सर्वदा परिपूर्ण प्रवाहित व प्रगति मान रहा है । वस्तुतः अभेद-भावपूर्ण आपके विराट व्यक्तित्व व वात्सल्य पीयूष स्रोत से सहस्रों भव्यात्माएँ लाभान्वित होती हुई अपने आप को धन्यशाली - पुण्यशाली मान रही हैं । हे संघ प्रतिष्ठा के सम्मुन्नायक ! परम ज्ञानस्तम्भ गुरुवर्य ने खिलती लघुवय में श्रद्धेय परम पूज्य त्याग शिरोमणि श्री मज्जैनाचार्य श्री खूबचन्द जी महाराज के श्रेष्ठ एवं वरद् हाथों से आर्हती दीक्षा स्वीकार अंगीकार कर, अपूर्व अद्वितीय अनूठा आगम सिद्धान्तों का गहन - गहरा गम्भीर हृदयस्पर्शी मकरन्द सम्पादन कर, चतुर्विध संघ प्रगति - विकास व अभ्युदय उन्मेष में अनुपम योगदान व प्रेरणा प्रदान की है । एतदर्थ भवदीय सुकृपा से आज संघ सुमेरु उत्थान कल्याण के शिखर पर अनवरित वृद्धिमान रूप से अग्रसर हो रहा है । हे आगम सिद्धान्त के ज्योतिर्धर ! जिनका गौरवमय जीवन पुष्प अभिराम आगमोदधि में सदा-सर्वदा अवगाहित रहा है । जैन सिद्धान्त-दर्शन का कोई भी सूत्र व भाव भाषा अर्थ आपकी पैनी दृष्टि से अछूता नहीं रहा — ऐसा हम मानते हैं । अर्थात् आगम का अक्षर-अक्षर आपने देखा व उन पर मार्मिक तार्किक अनुभव चिन्तन-मनन कर आपने प्रेरणादायी आगमिक निष्कर्ष निकालकर जन-जीवन को भर-भर मुट्ठी बाँटने का स्तुत्य प्रयास किया है । अतएव अनुभवशाली आप अपनी शानी के श्रमण श्रेष्ठ समूह में आप ही निष्णात निपुण मनस्वी यशस्वी माने जाते हैं । आपकी अन्तरात्मा व शान्त मुखमुद्रा श्रुतरत्नों से प्रकाशमान होती हुई आज चतुविध संघ के लिए प्रकाशस्तम्भ का कार्य कर रही है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012006
Book TitleMunidwaya Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRameshmuni, Shreechand Surana
PublisherRamesh Jain Sahitya Prakashan Mandir Javra MP
Publication Year1977
Total Pages454
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size10 MB
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