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________________ ३२ : डॉ० महेन्द्रकुमार जैन न्यायाचार्य स्मृति ग्रन्थ अगाध पाण्डित्य के धनी • पं० रविचन्द्र शास्त्री, दमोह पण्डित महेन्द्रकुमारजी न्यायाचार्य एक शान्त स्वभावी, निरभिमानी, उदार हृदय तथा अगाध पांडित्य के धनी थे । अनूठी प्रतिभा के धनी, प्रभावशाली व्यक्तित्व सम्पन्न पण्डित महेन्द्रकुमारजी न्यायाचार्य से मेरा प्रथम परिचय तब हुआ था जब मैं श्री गणेश दि० जैन संस्कृत विद्यालय सागर से प्रथमाकी परीक्षा उत्तीर्ण कर स्याद्वाद महाविद्यालय वाराणसी में अध्ययन हेतु प्रविष्ट हुआ था । पण्डितजीने मुझे न्यायदीपिका, प्रमेयरत्नमाला आदि दर्शन ग्रन्थोंका अध्ययन कराया था। इनकी शिक्षण पद्धति अत्यधिक सरस एवं सरल थी । दर्शन एवं न्याय सरीखे शुष्क तथा नीरस विषयको प्रेमपूर्वक शिष्योंके मस्तिष्क में स्थापित कर देनेकी अद्भुत कला थी उनमें । ऐसे अगाध पाण्डित्यके धनी विद्वान्का असमयमें निधन जैन जगत की अपूरणीय क्षति हुई है । उनका अभिनन्दन बहुत पहले हो जाना चाहिए था । पर 'देर आयत् दुरुस्त आयत्' की उक्ति को चरितार्थ करनेका जो उपक्रम किया जा रहा है वह श्रेयस्कर है । उनकी स्मृति में प्रकाशित स्मृति ग्रंथके लिए मेरी शुभकामनाएँ हैं । बुन्देलभूमि का अद्भुत् लाल • डॉ० कस्तूरचन्द्र 'सुमन' श्रीमहावीरजी भारत वसुन्धरामें बुन्देल भूमिका अपना एक विशेष स्थान रहा है । धर्म और दर्शन, कला और स्थापत्य के क्षेत्र में इसकी आन, वान-शान निराली ही है । इस वसुन्धरा पर जो लाल उत्पन्न हुए हैं उनमें न केवल वीरोंने अपितु ऐसे शिक्षा प्रेमी सरस्वतीपुत्रोंने भी जन्म लिया है जिन्होंने धर्म, दर्शनके समुन्नयन में अपना सम्पूर्ण जीवन लगा दिया । परमपूज्य न्यायाचार्यं गणेशप्रसाद वर्णी ( मुनि गणेशकीर्ति ) ऐसे ही साधु थे । उन्हींकी प्रेरणा स्वरूप अनेक विद्वानोंने इस धरतीको गौरवान्वित किया । संस्कृत शिक्षाके क्षेत्रमें संस्कृत साहित्यको पढ़कर अनेक जैन विद्वान् हुए किन्तु न्याय-विषयकी ओर बहुत कम विद्वानोंका ध्यान गया है। जिन गणमान्य विद्वानोंने न्यायको गले लगाया उनमें सरस्वती - साधक डॉ० महेन्द्रकुमारजी जैनका नाम उल्लेखनीय है । आप पूज्य वर्णीजीके परम अनुयायी रहे । अपने अध्ययन और चिन्तनसे ऐसे ग्रन्थोंका आपने सम्पादन और अनुवाद किया है जिनपर आज हमें विशेष गौरव है । उनकी मौलिक रचना "जैनदर्शन" तो जैनदर्शनको जानने-समझने के लिए बहुत उपयोगी ग्रन्थ है । बुन्देलभूमिका यह लाल आज भी जन-जनके हृदयमें विराजमान है और रहेगा । धन्य है यह आत्मा । मेरा उसे सविनय प्रणाम है । शुभकामना • डॉ० कपूरचन्द्र जैन, टीकमगढ़ आदरणीय डॉ० महेन्द्रकुमारजी ने अपने अल्प जीवनकालमें अनेक ग्रन्थोंका सम्पादन कर धर्म, समाज और देशकी जो सेवा की है, वह चिरस्मरणीय रहेगी। मैं श्री डॉ० साहबके प्रति अपनी श्रद्धांजलि समर्पित करता हूँ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012005
Book TitleMahendrakumar Jain Shastri Nyayacharya Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarbarilal Kothiya, Hiralal Shastri
PublisherMahendrakumar Jain Nyayacharya Smruti Granth Prakashan Samiti Damoh MP
Publication Year1996
Total Pages612
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size17 MB
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