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________________ ३० : डॉ० महेन्द्रकुमार जैन न्यायाचार्य स्मृति ग्रन्थ आशावादी बुद्धिवाद के जनक पण्डितजी • डॉ० नन्दलाल जैन, रोवाँ पण्डित महेन्द्रकुमारजी न्यायाचार्य मेरे स्याद्वाद महाविद्यालयीन छात्र जीवनमें साक्षात् गुरु रहे हैं । उन्होंने मुझे प्रमेयरत्नमाला, प्रमेयकमलमार्त्तण्ड और न्यायकुमुदचन्द पढ़ाये हैं । इन न्याय ग्रन्थोंके सामान्य asure भी व्यक्तिमें श्रद्धावादकी तुलनामें बुद्धिवाद और आगमवादकी तुलना में हेतुवादकी मनोवृत्ति सहज ही पनपती है । पण्डितजी के 'जैनदर्शन' में और उनकी अनेक प्रस्तावनाओंमें उनमें इस मनोवृत्तिकी प्रखरता के स्पष्ट दर्शन होते हैं । पण्डितजीने प्राचीनता और नवीनताके द्वंद्वको समाप्त करनेके लिए समन्तभद्रके 'समीचीनता' की मनोवृत्तिका नारा उद्घोषित किया है। उनके द्वारा प्रसारित बुद्धिवाद परीक्षा प्रधानी एवं विवेक जागर है । यह श्रद्धाको बलवती बनानेका एक अमोघ उपाय है । यही नहीं, उनका बुद्धिवाद जीवनके प्रति आशावादी और उत्थानवादी दृष्टिको भी प्रेरित करता है । हमें मानव और पशु जीवन इस योग्य बनानेका प्रयत्न करना चाहिए कि यदि हम उत्तर जीवनमें जावें, तो हमें अनुकूल सामग्री और सुन्दर वातावरण मिले । फलतः परलोक सुधारने का अर्थ मानवसमाजको सुधारना है । जैनोंके सम्यग्दर्शनका अर्थ यही है कि मानव तथा पशु समाजमें आये हुए दोषोंको निकालकर इन्हें सद्गुणी एवं सद्भावी बनाया जावे। इस दृश्य परलोकके सुधार के लिए उत्तम सर्वोदयकारणी व्यवस्था विकसित हो जिससे हमें स्वर्गके सुख भी न मोह सकें । यह व्यवस्था 'समीचीन' धर्मके सिद्धान्तों के परिपालन से ही संभव है । परलोकका अर्थ केवल व्यक्ति का मरणोत्तर जीवन ही नहीं है, हमारी संतति और शिष्य परम्परा भी परोक्ष रूपमें इसके रूप हैं । इन्हें सुसंस्कारित कर हम अपना ही नहीं, भावी पीढ़ीको भी सुखमय बना सकते हैं । पण्डितजीका प्रचण्ड आशावादी स्वरूप उनके बुद्धिवाद की ही देन है । उनके स्वतन्त्रता के स्वरूपके कितने ही उदाहरण दिये जा सकते हैं । वे नयी पीढ़ीको परम्पराचेताके बदले स्वतन्त्रचेता देखना चाहते हैं । यही जैन संस्कृतिकी परम्पराको अक्षुण्णरूपसे विकसित बने रहने में सहायक होगा । उनके अनेक आल्हादकारी और अनुकरणीय रूप अनेक व्यक्तियों द्वारा प्रकट किये गये हैं । हम सभी उनके विचारों के अनुरूप अपने-अपने क्षेत्रोंमें आशावादी, बुद्धिवादकी मशाल जलाये रखने में समर्थ हों, यही परोक्ष आशीर्वाद उनसे अभीप्सित है । उनके चरणों में शत शत वंदन । शुभकामना पं० मल्लिनाथ जैन शास्त्री, मद्रास के अप्रतिम प्रतिभाशाली तो थे ही। उन्होंने अपने जीवन कालमें कठिन से हमारी शुभकामना यही है श्रद्धाञ्जलि होगी । यशस्वी एवं महाविद्वान् डॉ० महेन्द्रकुमारजी जैन न्यायाचार्य ऊँचे दर्जेके विद्वान् थे । वे न्यायशास्त्रसाथ ही साथ संस्कृत, प्राकृत आदि कई भाषाओंके ज्ञाता भी थे । कठिन ग्रन्थोंका सम्पादन कर अपनी विद्वत्ताका परिचय दिया है । कि हम उनके बताये हुए मार्गपर चलें । यही उनके प्रति हमारी सच्ची Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012005
Book TitleMahendrakumar Jain Shastri Nyayacharya Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarbarilal Kothiya, Hiralal Shastri
PublisherMahendrakumar Jain Nyayacharya Smruti Granth Prakashan Samiti Damoh MP
Publication Year1996
Total Pages612
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size17 MB
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