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________________ १६ : डॉ. महेन्द्रकुमार जैन न्यायाचार्य स्मृति-ग्रन्थ शुभकामना • श्री देवकुमारसिंह कासलीवाल, इन्दौर डॉ. महेन्द्रकुमारजी जैन न्यायाचार्य स्मृति ग्रन्थका प्रकाशन किया जा रहा है उससे अत्यंत प्रसन्नता है । डॉ० महेन्द्रकुमारजी जैन ने धर्म, समाज एवं साहित्यके क्षेत्रमें जो अपनी सेवाएं प्रदान की हैं वह प्रशंसनीय एवं सराहनीय हैं, इस अवसर पर मेरी अनेकानेक शुभकामनाएँ एवं बधाइयाँ । शुभकामना • श्री निर्मलकुमार जैन सेठी पूज्य श्री महेन्द्रकुमारजी न्यायाचार्य जैन न्यायशास्त्रके एक उच्चकोटिके विद्वान् थे और उन्होंने जैन संस्कृतिके संवर्धनमें अपनी बहुमल्य सेवायें अर्पित की हैं। उनकी जैन साहित्य साधनाके योगदानकी जानकारी हेतु स्मृति ग्रन्थके प्रकाशनके इस प्रयास की मैं सराहना करता हूँ। असाधारण विद्वान् श्री डालचन्द्र जैन, सागर ( पूर्व सांसद ) डॉ. महेन्द्रकुमार जैन, न्यायाचार्य समाजके उद्भट विद्वान् थे जिन्होंने मां सरस्वतीकी अपूर्व सेवा की है । जैन साहित्य, धर्म एवं दर्शनके असाधारण विद्वान् थे । विद्वत्ताके दर्पसे वे किसी प्रकार आक्रान्त नहीं हये। अपनी अगाध ज्ञान राशिको विविध रूपोंमें वितरित कर उन्होंने अपना बौद्धिक जीवन सार्थक किया। उन्होंने अपनी कृतियोंमें पांडित्यके साथ, उस व्यापक दृष्टिकोणको अपनाया है जो समभाव तथा अनेकान्तका परिचायक है। न्याय एवं दर्शनके वे अधिकारी विद्वान् थे । उन्होंने सरस-सरल भाषामें जैनदर्शनके मल सिद्धान्तोंपर अनेकों पुस्तकें लिखी हैं। उनको अभी समाजके बीजमें और रहना था। छोटी आयुमें संसार छोड़कर चले गये जो समाज की अपूरणीय क्षति है। ऐसे मूर्धन्य विद्वान्को मेरी सम्मानाञ्जलि समर्पित है। भारतीय दर्शन के तलस्पर्शी विद्वान • श्री ज्ञानचन्द खिन्दूका, जयपुर डॉ. महेन्द्रकुमारजी जैन न्यायाचार्यकी गणना इस शताब्दीके मूर्धन्य विद्वानोंमें आती है । वे जैनदर्शनके ही नहीं अपितु समस्त भारतीय दर्शनोंके तल-स्पर्शी विद्वान् थे। जैन न्याय साहित्य पर सम्पादित उनकी कृतियोंमें इसका स्पष्ट आभास मिलता है। "जैनदर्शन" नामकी उनकी मौलिक कृति उनकी असाधारण योग्यता व विषयकी पकड़ की परिचायक है । चालीस वर्ष पूर्व लिखित इस कृतिमें इस विषयपर बड़ी गम्भीरतापूर्वक ऊहापोह किया गया है जिसकी समानतामें आधुनिक अनेक कृतियाँ उस स्तर की नहीं बन पाई हैं। यह समाजका दुर्भाग्य ही समझिये कि ऐसी असाधारण प्रतिभा सम्पन्न विद्वान् अल्पायुमें ही कालकवलित हो गया। उन द्वारा छोड़ा गया साहित्य आनेवाली पीढ़ीको मार्गदर्शन व प्रेरणा देता रहेगा। ऐसे विद्वानको मैं विनयपूर्वक प्रणाम करता हूँ। जिन महानुभावोंने कृतज्ञतावश स्मृति-ग्रन्थके प्रकाशनका संकल्प किया है वे साधुवादके पात्र हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012005
Book TitleMahendrakumar Jain Shastri Nyayacharya Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarbarilal Kothiya, Hiralal Shastri
PublisherMahendrakumar Jain Nyayacharya Smruti Granth Prakashan Samiti Damoh MP
Publication Year1996
Total Pages612
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size17 MB
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