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________________ ४/ विशिष्ट निबन्ध : २०५ जितने कार्य स्वयंमें परमें या दोनोंमें दुःख आदिके उत्पादक है वे सब असातावेदनीय कर्मके आस्रवमें कारण होते हैं। सातावेदनीय-प्राणिमात्रपर दयाका भाव, मुनि और श्रावकके व्रत धारण करनेवाले व्रतियोंपर अनकम्पाके भाव. परोपकारार्थ दान देना, प्राणिरक्षा. इन्द्रियजय, शान्ति अर्थात क्रोध, मान, मायाका त्याग, शौच अर्थात् लोभका त्याग, रागपूर्वक संयम धारण करना, अकामनिर्जरा अर्थात् शान्तिसे कर्मोके फलका भोगना, कायक्लेश रूप कठिन बाह्यतप, अर्हत्पूजा आदि शुभ राग, मुनि आदिकी सेवा आदि स्व पर तथा उभयमें निराकुलता सुखके उत्पादक विचार और क्रियाएँ सातावेदनीयके आस्रवका कारण होती हैं। दर्शनमोहनीय-जीवन्मुक्त केवली शास्त्र संघ धर्म और देवोंकी निन्दा करना, इनमें अवर्णवाद अर्थात् अविद्यमान दोषोंका कथन करना दर्शनमोहनीय अर्थात् मिथ्यात्व कर्मका आस्रव करता है। केवली रोगी होते हैं, कवलाहारी होते हैं, नग्न रहते हैं पर वस्त्रयुक्त दिखाई देते हैं, इत्यादि केवलीका अवर्णवाद है। शास्त्रमें मांसाहार आदिका समर्थन करना श्रतका अवर्णवाद है । शास्त्र मुनि आदि मलिन है, स्नान नहीं करते, कलिकालके साधु हैं इत्यादि संघका अवर्णवाद है । धर्म करना व्यर्थ है, अहिंसा कायरता है आदि धर्मका अवर्णवाद है। देव मद्यपायी और मांसभक्षी होते हैं आदि देवोंका अवर्णवाद है। सारांश यह कि देव, गुरु, धर्म, संघ और श्रतके सम्बन्धमें अन्यथा विचार और मिथ्या धारणाएँ मिथ्यात्वको पोषण करती हैं और इससे दर्शनमोहका आस्रव होता है जिससे यथार्थ तत्त्वरुचि नहीं हो पाती । चारित्रमोहनीय स्वयं और परमें कषाय उत्पन्न करना, ब्रतशीलवान् पुरुषोंमें दूषण लगाना, धर्मका नाश करना, धर्ममें अन्तराय करना, देश संयमियोंसे व्रत और शीलका त्याग कराना, मात्सर्यादिसे रहित सज्जन पुरुषों में मतिविभ्रम उत्पन्न करना, आर्त और रौद्र परिणाम आदि कषायकी तोव्रताके साधन कषाय चारित्रमोहनीयके आस्रवके कारण है। समीचीन धार्मिकोंकी हँसी करना, दीनजनोंको देखकर हँसना, काम विकारके भावों पूर्वक हँसना, बहु प्रलाप तथा निरन्तर भाँडों जैसी हँसोड़ प्रवृत्तिसे हास्य नोकषायका आस्रव होता है। नाना प्रकार क्रीड़ा, विचित्र क्रीड़ा, देशादिके प्रति अनौत्सुक्य, व्रत शील आदिमें अरुचि आदि रति नोकषाय आस्रवके हेतु है। दूसरोंमें अरति उत्पन्न करना, रतिका विनाश करना, पापशीलजनोंका संसर्ग, पाप क्रियाओंको प्रोत्साहन देना आदि अरति नोकषायके आस्रवके कारण हैं। अपने और दसरे में शोक उत्पन्न करना, शोकयुक्तका अभिनन्दन, शोकके वातारवणमें रुचि आदि शोक नोकषायके कारण हैं। स्व और परको भय उत्पन्न करना. निर्दयता, दसरोंको त्रास देना, आदि भयके आस्रवके कारण हैं। पण्यक्रियाओंमें जुगुप्सा करना, पर निन्दा आदि जुगुप्साके आस्रवके कारण है। परस्त्रीगमन, स्त्रीके स्वरूपको धारण करना, असत्य वचन, परवञ्चना, परदोष दर्शन, वृद्ध होकर भी युवकों जैसी प्रवृत्ति करना आदि स्त्रीवेदके आस्रवके हेतु है। अल्पक्रोध, मायाका अभाव, गर्वका अभाव, स्त्रियोंमें अल्प आसक्ति, ईर्षाका न होना, रागवर्धक वस्तुओंमें अनादर, स्वदारसन्तोष, परस्त्रीत्याग आदि पुंवेदके आस्रवके कारण हैं। प्रचर कषाय, गुह्येन्द्रियोंका विनाश, परांगनाका अपमान, स्त्री या पुरुषोंमें अनंगक्रीड़ा, व्रतशीलयुक्त पुरुषोंको कष्ट उत्पन्न करना, तीव्रराग आदि नपुंसक वेदनीय नोकषायके आस्रवके हेतु हैं ।। नरकायु-बहुत आरम्भ और बहुत परिग्रह नरकायुका आस्रव कराते हैं । मिथ्यादर्शन, तीव्रराग, मिथ्याभाषण, परद्रव्यहरण, निःशीलता, तीव्र वैर, परोपकार न करना, यतिविरोध, शास्त्र विरोध, कृष्णलेश्या रूप अतितामसपरिणाम, विषयोंमें अतितृष्णा, रौद्र ध्यान, हिंसादि कर कार्यों में प्रवृत्ति, बाल वृद्ध स्त्री हत्या आदि करकर्म नरकायुके आस्रवके कारण होते हैं । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012005
Book TitleMahendrakumar Jain Shastri Nyayacharya Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarbarilal Kothiya, Hiralal Shastri
PublisherMahendrakumar Jain Nyayacharya Smruti Granth Prakashan Samiti Damoh MP
Publication Year1996
Total Pages612
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size17 MB
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