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________________ ४ / विशिष्ट निबन्ध : १६७ जैसे प्रथित तर्कग्रन्थोंके रचयिता थे तथा शब्दाम्भोजभाराम जनेन्द्र न्यामके कर्ता भी थे। इसी शिलालेखमें पद्मनन्दि सैद्धान्तिकको अविद्धकर्णादिक और कौमारदेवव्रती लिखा है। इन विशेषणोंसे ज्ञात होता है कि-पद्मनन्दि सैद्धान्तिकने कर्ण वेध होनेके पहिले ही दीक्षा धारण की होगी और इमीलिए ये कौमारदेवव्रती कहे जाते थे । ये मूलसंघान्तर्गत नन्दिगण के प्रभेदरूप देशीगणके श्रीगोल्लाचार्यके शिष्य थे । प्रभाचन्द्र के सधर्मा श्रीकुलभूषणमुनि थे । कुलभूषण मुनि भी मिद्धान्त शास्त्रों के पारगामी और चारित्रसागर थे । इस शिलालेखमें कुलभूषणमुनिकी शिष्यपरम्पराका वर्णन है, जो दक्षिणदेशमें हुई थी। तात्पर्य यह कि आ० प्रभाचन्द्र मलसंघान्तर्गत नन्दिगणकी आचार्यपरम्परामें हए थे । इनके गुरु पद्मनन्दिसैद्धान्त थे और सधर्मा थे कुलभषणमुनि । मालम होता है कि प्रभाचन्द्र पद्मनन्दिसे शिक्षा-दीक्षा लेकर धारानगरीमें चले आए, और यहीं उन्होंने अपने ग्रन्थोंकी रचना की । ये धाराधीश भोजके मान्य विद्वान थे । प्रमेयकमलमार्तण्डकी "श्रीभोजदेवराज्ये धारानिवासिना" आदि अन्तिम प्रशस्तिसे स्पष्ट है कि यह ग्रन्थ धारानगरीमें भोजदेवके राज्यमें बनाया गया है। न्यायकूमदचन्द्र, आराधनागद्यकथाकोश और महापुराण टिप्पणकी अन्तिम प्रशस्तियोंके "श्रीजयसिंहदेवराज्ये श्रीमद्धारानिवासिना" शब्दोंसे इन ग्रन्थोंकी रचना भोजके उत्तराधिकारी जयसिंहदेवके राज्यमें हुई ज्ञात होती है । इसलिए प्रभाचन्द्र का कार्यक्षेत्र धारानगरी ही मालम होता है । संभव है कि इनकी शिक्षा-दीक्षा दक्षिणमें हुई हो । श्रवणवेल्गोलाके शिलालेख नं० ५५ में मलसंघके देशीगणके देवेन्द्रसैद्धान्तदेवका उल्लेख है। इनके शिष्य चतुर्मुखदेव और चतूमखदेवके शिष्य गोपनन्दि थे। इसी शिलालेखमें इन गोपनन्दिके सधर्मा एक प्रभाचन्द्रका वर्णन इस प्रकार किया गया है"अवर सधर्मरुश्रीधाराधिपभोजराजमुकटप्रोताश्मरश्मिच्छटा च्छायाकुङ्कमपङ्कलिप्तचरणाम्भोजातलक्ष्मीधवः । न्यायाब्जाकरमण्डने दिनमणिश्शब्दाब्जरोदोमणिः, स्थेयात्पण्डितपुण्डरीकतरणिः श्रीमान् प्रभाचन्द्रमाः ।। १७॥ श्रोचतुर्मुखदेवानां शिष्योऽधृष्यः प्रवादिभिः । पण्डितश्रीप्रभाचन्द्रो रुद्रवादिगजाङ्कुशः ॥ १८॥" इन इलोकोंमें वर्णित प्रभाचन्द्र भी धाराधीश भोजराजके द्वारा पूज्य थे, न्यायरूप कमलसमह (प्रमेयकमल ) के दिनमणि ( मार्तण्ड ) थे, शब्दरूप अब्ज ( शब्दाम्भोज ) के विकास करनेको रोदोमणि (भास्कर) के समान थे। पंडित रूपी कमलोंके प्रफुल्लित करनेवाले सूर्य थे, रुद्रवादि गजोंको वश करने के लिए अंकुशके समान थे तथा चतुर्मखदेवके शिष्य थे। क्या इस शिलालेखमें वणित प्रभाचन्द्र और पद्मन न्दि सैद्धान्तके शिष्य, प्रथिततर्क ग्रन्थ कार एवं शब्दाम्भोजभास्कर प्रभाचन्द्र एक ही व्यक्ति हैं ? इस प्रश्नका उत्तर 'हाँ' में दिया जा सकता है, पर इसमें एक ही बात नयी है। वह है-गुरुरूपसे चतुर्मखदेवके उल्लेख होनेकी । मैं समझता हूँ कि-यदि प्रभाचन्द्र धारामें आनेके बाद अपने ही देशीयगणके श्री चतुर्मखदेवको आदर और गुरुकी दृष्टिसे देखते हों तो कोई आश्चर्य की बात नहीं है। पर यह सुनिश्चित है कि प्रभाचन्द्र के आद्य और परमादरणीय उपास्य गुरु पद्मनन्दि सैद्धान्त ही थे । चतुर्मखदेव द्वितीय गुरु या गुरुसम हो सकते हैं। यदि इस शिलालेखके प्रभाचन्द्र और प्रमेयकमलमार्तण्ड आदिके रचयिता एक ही व्यवित है तो यह निश्चितरूपसे कहा जा सकता है कि प्रभाचन्द्र धाराधीश भोजके समकालीन थे। इस शिलालेखमें प्रभाचन्द्र को गोपनन्दिका सधर्मा कहा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012005
Book TitleMahendrakumar Jain Shastri Nyayacharya Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarbarilal Kothiya, Hiralal Shastri
PublisherMahendrakumar Jain Nyayacharya Smruti Granth Prakashan Samiti Damoh MP
Publication Year1996
Total Pages612
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size17 MB
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