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________________ ३ / कृतियोंकी समीक्षाएँ : २३ समादर दृष्टि और तुलनात्मक अध्ययन एवं अनुसंधानकी व्यापकता, विशेषताओंका सागर हिलोरें लेता दिखलाई पड़ता है जो किसी भी विद्वान्के मनमें उनके प्रति गौरव और आदरके भाव उत्पन्न करनेके लिए पर्याप्त है । वस्तुतः प्रस्तुत ग्रन्थ तथा अन्य अनेक ग्रन्थोंके सम्पादन कार्य, मौलिक चिन्तन और लेखन कार्यों के मूल्यांकनने श्रेष्ठ भारतीय दार्शनिकोंकी पंक्ति में सम्मिलित न्यायाचार्य जी एक प्रकाशमान नक्षत्रकी तरह दिखलाई देते रहेंगे । डॉ० महेन्द्रकुमारजी द्वारा सम्पादित न्यायकुमुदचन्द्र • डॉ० जयकुमार जैन, मुजफ्फरनगर पण्डित महेन्द्रकुमार न्यायाचार्य प्राचीन संस्कृत ग्रंथोंके सम्पादन कार्य में निपुण थे । उनके द्वारा प्राचीन आचार्योंकी हस्तलिखित जैन न्याय विषयक अनेक कृतियोंका उद्धार हुआ है। उन्हीं में से आचार्य अकलंकदेव द्वारा रचित लघीयस्त्रयकी कारिकाओंपर आचार्य प्रभाचन्द्र द्वारा रचित लगभग बीस सहस्र पद्य प्रमाण न्यायकुमुदचन्द्र नामक टीकाका सम्पादन एवं संशोधन उनके जैन एवं जैनेतर न्याय विषयक ज्ञान का उद्घोष करता है । प्रस्तुत ग्रन्थ श्री माणिकचन्द्र दिगम्बर जैन ग्रन्थमाला, बम्बई से सुप्रसिद्ध इतिहासज्ञ पं० नाथूराम जी प्रेमी मन्त्रित्व कालमें सन् १९३८ एवं १९४१ में क्रमशः दो भागोंमें ३८वें एवं ३९ वें पुष्पके रूपमें प्रकाशित हुआ है । न्यायकुमुदचन्द्रके सम्पादन एवं संशोधनमें आदरणीय पण्डितजीके द्वारा जैन एवं जैनेतर ग्रन्थोंसे लिये गये विविध टिप्पण सम्पादनका मूल हार्द हैं । इन टिप्पणोंके माध्यमसे अनेक दार्शनिक एवं ऐतिहासिक गुत्थियोंका स्पष्टीकरण तो हुआ हो है, साथ ही समालोचनात्मक अध्ययन करनेवाले शोधी-खोजी विद्वानों के लिए बहुमूल्य शोधात्मक सामग्री प्रस्तुत की गई है। इन टिप्पणोंसे एक अन्य लाभ यह हुआ है कि अनेक आचार्योंके काल निर्धारण में पर्याप्त सहायता मिली है और लेखन शैली तथा विद्वानों / आचार्यों द्वारा परस्पर आदान-प्रदान की गई सामग्रीका आकलन हुआ है । मूल ग्रन्थमें अनेक आचार्योंके नामोल्लेखपूर्वक आये हुये उद्धरणोंके माध्यमसे अनेक विलुप्त ग्रन्थों एवं उनके लेखक आचार्योंका पता चला है। इस प्रकार न्यायकुमुदचन्द्रके सम्पादनके व्याजसे समस्त दर्शनों एवं न्याय विषयक विविध प्रस्थानोंका एक ही स्थानपर अच्छा मेल हुआ है । अतः इस ग्रन्थका टिप्पणों सहित अध्ययन करने से समग्र भारतीय दर्शनों एवं न्याय विषयक मान्यताओंको अच्छी जानकारी मिलती है । सम्पादनको प्रामाणिकताके लिए आदरणीय पण्डितजीने हस्तलिखित मूल ग्रन्थ के एक पृष्ठकी फोटो प्रति भी ग्रन्थ में मुद्रित कराई है । उपर्युक्त विशेषताओंके अतिरिक्त इस ग्रन्थके प्रारम्भ में प्रथम भाग में स्याद्वाद महाविद्यालय, काशीके पूर्व प्राचार्य एवं जैन जगत्के विश्रुत विद्वान् पं० कैलाशचन्द्र शास्त्रीके द्वारा लिखित प्रस्तावना में सिद्धि - विनिश्चय एवं प्रमाणसंग्रहका परिचय तथा न्यायकुमुदचन्द्रकी इतर दर्शनोंके ग्रंथोंके साथ तुलना जैसे Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012005
Book TitleMahendrakumar Jain Shastri Nyayacharya Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarbarilal Kothiya, Hiralal Shastri
PublisherMahendrakumar Jain Nyayacharya Smruti Granth Prakashan Samiti Damoh MP
Publication Year1996
Total Pages612
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size17 MB
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