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________________ २ / जीवन परिचय : व्यक्तित्व एवं कृतित्व : १३ विद्यानन्द कृत तत्त्वार्थश्लोकवातिकका अलंकार नामक हिन्दी-भाष्य लिखकर अपनी उत्कृष्ट प्रतिभाका परिचय दिया। फिर भी, जैन न्यायशास्त्रके अनेक कठिन ग्रन्थ अभी तक अछूते ही पड़े थे। उनकी दुरुहता और जटिलताके कारण वे पठन-पाठनसे भी बाहर होते जा रहे थे। यह सौभाग्यभरा संयोग ही था कि पं० महेन्द्रकुमारजी अपनी प्रारम्भिक शिक्षा समाप्तकर, श्री. पं० घनश्यामदासजी न्यायतीर्थ के सम्पर्क में आए और उनकी घनीभूत प्रेरणासे उन्होंने जैनन्यायशास्त्रके अध्ययनमें विशेष अभिरुचि जागृत की। उन्होंने नाभिनन्दन दि० जैन विद्यालय, बीना (मध्यप्रदेश ) तथा सरसेठ हुकुमचन्द्र दि० जैन महाविद्यालय, इन्दौर में पं० वंशीधरजी एवं पं० जीवन्धरजी न्यायतीर्थ के पादमलमें बैठकर उनसे जैनधर्म एवं न्यायग्रन्थोंका विशेष अध्ययन किया । पण्डितजी प्रारम्भसे ही कठोर परिश्रमी, दृढ़-संकल्पी एवं जैन-न्यायके ग्रन्थोंके उद्धारके प्रति समर्पित भावनासे ओतप्रोत रहे । उन्होंने साधनाभावों एवं आर्थिक विपन्नतासे कभी भी हार नहीं मानी बल्कि उन्होंने अपने अध्यवसायसे अपनी आर्थिक दरिद्रताको वरदानमें बदलनेके साहसभरे प्रयत्न किए। पं० नाथ प्रेमी, महापण्डित राहुल सांकृत्यायन, पं० सुखलाल जी संघवी, महामहोपाध्याय डॉ० गोपीनाथ कविराज, डॉ० मंगलदेव शास्त्री, पं० गणेशप्रसादजी वर्णी, डॉ. हीरालाल जैन आदिके सान्निध्यने उन्हें निरन्तर ही प्रेरित एवं उत्साहित रखा । यही कारण है कि विभिन्न विघ्न-बाधाओंके बीच भी उन्होंने अपनो साहित्य-साधनाको अक्षुण्ण बनाए रखा और एदयुगीन नैयायिकों तथा दार्शनिकोंकी अपेक्षा उन्होंने गुण एवं परिमाण दोनों ही दृष्टियोंसे श्रेष्ठ कार्य किए। जैन न्यायशास्त्रके क्षेत्रमें उनके निम्न ऐतिहासिक शोध-कार्य अगली पौढीको निरन्तर प्रेरित करते रहेंगे। १-न्यायकूमदचन्द्र (प्रभाचन्द्र ) माणिकचन्द्र सीरीज, बम्बई १९३८, ४१ (१२ भा०) पृ० ९४१ ( ग्रन्थांक ३८-३९) २-अकलंकग्रन्थ त्रयम् ( अकलंक ) पृ० २८८ सिंघी जैन सीरोज, बम्बई (ग्रन्थांक १२) १९३९ ३-प्रमाणमीमांसा (हेमचन्द्र) पृ. ३२४ सिंघी जैन सीरीज, बम्बई (ग्रन्थांक ९) १९३९ ४-प्रमेयकमलमार्तण्ड (प्रभाचन्द्र) पृ० ९१० निर्णयसागर प्रेस, बम्बई १९४१ ५-तत्त्वार्थवृत्ति (श्रुतसागरसूरि) पृ० ६५५ भारतीय ज्ञानपीठ, काशी (ग्रन्थांक १३) १९४९ ६-न्यायविनिश्चयविवरणम् (अकलंक) पृ० १०१८ भारतीय ज्ञानपीठ, काशी (ग्रन्थांक ३, १३) १९४९, ५४ ७-तत्त्वार्थराजवार्तिक (अकलंक) पृ० ९५० भारतीय ज्ञानपीठ, काशी (ग्रन्थांक १९-२०) १९५७ ८-सिद्धिविनिश्चय टीका (अकलंक) पृ० २१५ भारतीय ज्ञानपीठ, काशी (ग्रन्थांक २२-२३) १९५९ ९-जैनदर्शन (हिन्दी) १० ६८३ वर्णी ग्रन्थमाला वाराणसी (ग्रन्थांक २) १९५५ १०-षड्दर्शन समुच्चय (हरिभद्र) भारतीय ज्ञानपीठ, दिल्ली इसके अतिरिक्त जैन न्याय-दर्शन तथा इतिहास एवं साहित्यपर कई योजनापूर्ण निबन्ध, कहानियाँ, कविताएँ भी लिखीं। ___ उनके द्वारा लिखित एवं सम्पादित साहित्यके वैशिष्ट्यका संक्षिप्त परिचय निम्न प्रकार है१-न्यायकुमुवचन्द्र प्रस्तुत ग्रन्थ भट्टाकलंकदेव विरचित स्वविवृत्ति सहित लघीयस्त्रय नामक ग्रन्थपर आचार्य प्रभाचन्द्र कृत विस्तृत टोका है, जिसका प्रकाशन माणिकचन्द्र दि० जैन ग्रंथमाला, बम्बईसे क्रमशः सन् १९३८ भाष Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012005
Book TitleMahendrakumar Jain Shastri Nyayacharya Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarbarilal Kothiya, Hiralal Shastri
PublisherMahendrakumar Jain Nyayacharya Smruti Granth Prakashan Samiti Damoh MP
Publication Year1996
Total Pages612
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size17 MB
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