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________________ चतुर्थखण्ड : ५७५ ५. आजकल जैन समाज में वर्तमान पत्र बाचनेकी बहुत ही कम रुचि देखी जाती है । परन्तु समाजको यह बात ध्यान में रखनी चाहिये कि आजके जमानेकी सम्पूर्ण हालचाल इन वर्तमान पत्रोंके द्वारा ही विदित होती है । जैनसमाज उनका ग्राहक होकर वर्तमान पत्रोंके प्रचारमें जितनी अधिक मदद करेगी, कलाकी दृष्टि से वे उतने ही आगे आ सकेंगे । अतएव समाजका काम है कि उसे ऐसी सभाओंके द्वारा जैनपत्रोंके प्रचारका काम अपने हाथमें अवश्य लेना चाहिये । जैनसमाजमें उत्तम लेखक, कवि और पत्रोंके अभावका दोष पत्रसंचालकोंकी अपेक्षा समाजके ऊपर अधिक है । समाजका पैसा जितना अधिक दूसरे कामोंमें खर्च होता है उतना अधिक विधेय कामों में खर्च नहीं होता है । क्या समाज इन वीरजयंती के अवसरपर वीर भगवान्‌के संपदेशको संसारमें प्रसृत करनेवाले इन पत्रों के प्रसारकी कोई ठोस योजनाका विचार करेगी । ६. वीर भगवान्‌का उपदेश संगठन और सहिष्णुताका पाठ पढ़ाता है । समाजने वीर भगवान् के दिव्य उपदेशका स्मरण करके आपसी वैमनस्य भुलानेका ऐसी सभाओं द्वारा अवश्य ही प्रयत्न करना चाहिये । यही वे मार्ग हैं जिनके द्वारा हम वीर भगवान्‌ के सच्चे अनुयायी होनेका हक अपने में प्रत्थापित करके उनकी जयंती के सच्चे माननेवाले हो सकते हैं । Jain Education International কক ক For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012004
Book TitleFulchandra Shastri Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJyoti Prasad Jain, Kailashchandra Shastri
PublisherSiddhantacharya Pt Fulchandra Shastri Abhinandan Granth Prakashan Samiti Varanasi
Publication Year1985
Total Pages720
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size18 MB
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