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________________ भगवान महावीर स्वामोकी जयंती मनाइये भगवान् महावीरके कार्य अपूर्व थे यह उनके लोकोत्तर चारित्रके बांच लेनेसे ही मालूम पड़ जाता है । वे संसारके लिये एक अपूर्व और सर्वश्रेष्ठ देनगी थे यह उस समयके महापुरुषोंने भी कबूल किया है। उनका जीवन सामाजिक और धार्मिक उत्क्रांतिसे भरा हुआ था, उन्होंने धर्म और समाजका पाया तर्कशुद्ध और बहुजन समाजके लिये कल्याणकारी नियमोंके आधारसे किया था। इस अवसर्पिणीकालमें भगवान् महावीर स्वामीके समान २३ और महापुरुष हो गये है। उनके और इनके धार्मिक और सामाजिक नियमोंमें यद्यपि अन्तर नहीं है फिर भी वे एक दूसरेके अनुकर्ता न होकर उन नियमों और सिद्धान्तोंके पुरस्कर्ता थे। उनके जीवनमें एक विशेषता थी जो दूसरेके जीवनमें मिलना संभव नहीं। उनका बताया हुआ मार्ग इस पर्यायमें तो सुखदाई है ही किन्तु उससे पारलौकिक और अविनाशिक सुखकी भी प्राप्ति होती है। ऐसे लोकोत्तर महापुरुषका किसी निमित्तसे स्मरण करना हमारे जीवनमें स्फूर्ति और पवित्रता उत्पन्न करनेवाला है । आजसे २५३५ वर्ष पहिले मिती चैत्र शुक्ला १३ के दिन भगवान् महावीरने जनकल्याण और आत्मकल्याणकी भावना लेकर इस भूमंडलको सुशोभित किया था। ऐसे पुनीत अवसर पर उस दिव्यमूर्तिका स्मरण करना संसारके प्रत्येक व्यक्तिका काम है। परन्तु दुःख है कि उनकी इस पुण्यतिथिका महत्व उनके उपदेशके अनुयायी जैन लोग भी नहीं समझते हैं । यद्यपि यह ठीक है कि भगवान् महावीर स्वामीका उपदेश किसी संप्रदाय विशेषकी पुष्टिके लिये नहीं हुआ और आज भी उनके उपदेशका वह पवित्र उद्देश्य अनविच्छिन्नरूपसे विद्यमान है। फिर भी वह संसार अनेक धर्मोकी बजबजपुरी बन गया है इसलिये साम्प्रदायिकता उत्पन्न होना स्वाभाविक बात है। लोग धर्मके महत्वको भलकर सम्प्रदायके पीछे दौड़ने लगे हैं। उन कट्टर धर्मात्माओंमें भी साम्प्रदायिकताका विकारी विष आपको देखनेके लिये मिलेगा । जिससे धर्मका जनकल्याण यह वाणी प्रायः लुप्त होता जाता है। भगवान् महावीर जैन लोकोपकारी महापुरुषके नाम लेनेमें भी दूसरे लोग अपना अहित समझते है । यदि जैनी भाई अपने स्वार्थत्याग और धर्म की सच्ची भावनासे प्रेरित होकर साम्प्रदायिकतासे परे भगवान् महावीरका उपदेश संसारके कोने-कोने तक पहुँचा सके तो यह सच्चे धर्मको विजय होगी। इसके लिये जैनी भाइयोंको क्या करना चाहिये इसके लिये नीचे कुछ मार्ग सुझाये जाते है। १. महावीर जयंतीके दिन व्यापार सम्बन्धी काम बन्द करके सार्वजनिक सभायें करनी चाहिये । २. जहाँ तक सम्भव हो ऐसी सभाओंके सभापति अजैन विद्वानोंको बनाना चाहिये । ३. जो अजैन विद्वान् सभापतिका पद स्वीकार करनेके लिये स्वीकारता दे दे उनके पास जैन धर्मके मल तत्वोंको परिचय करनेवाली पुस्तकें पहिले ही भेज देनी चाहिये जहाँपर ऐसी पुस्तकें उपलब्ध न हों वहाँ पर अहिंसा कर्म सिद्धांत और स्याद्वाद इत्यादि विषयोंका संक्षिप्तसार किसी योग्य विद्वानसे लिखवा कर उनके पास भेज देना चाहिये जिससे उक्त विद्वानोंको जैन सिद्धान्तके सम्बन्धमें मनन करनेके लिये मदद मिलेगी। ४. महावीर जयंती निमित्तमें सार्वजनिक छुट्टीका प्रयत्न भी ऐसी सभाओंके द्वारा करना चाहिये तथा सुसंगठित मध्यवर्ती सभाओंके द्वारा इसकी सूचना सरकारको देनेकी व्यवस्था करनी चाहिये। ऐसे समाचार धार्मिक और सार्वजनिक पत्रोंमें अवश्य प्रकाशित करना चाहिये । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012004
Book TitleFulchandra Shastri Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJyoti Prasad Jain, Kailashchandra Shastri
PublisherSiddhantacharya Pt Fulchandra Shastri Abhinandan Granth Prakashan Samiti Varanasi
Publication Year1985
Total Pages720
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size18 MB
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