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________________ ५५६ : सिद्धान्ताचार्य पं० फूलचन्द्र शास्त्री अभिनन्दन-प्रन्थं और धर्ममें यही अन्तर है। इसलिये जहांतक समाजका प्रश्न है हमें वही अधिकार स्त्रियोंके भी मानने चाहिये जो पुरुषोंको प्राप्त है। ये हैं अध्यात्म-समाजवादकी शिक्षाएँ। अध्यात्म-समाजवाद अध्यात्ममूलक समाजवादका संक्षिप्त रूप है । इसमें अध्यात्म शब्द व्यक्तिको स्वतंत्रताका सूचक है और समाजवाद सहयोग प्रणालीके आधारपर स्वीकृत कार्यकारण भावको सूचित करता है। कहीं-कहीं इसे अध्यात्मवाद भी कहा गया है। इसके द्वारा जहाँ हम एक ओर विकारोंको दूर करनेमें समर्थ होते हैं वहीं दूसरी ओर परस्परके समझौते द्वारा विकारोंपर नियंत्रण स्थापित करते हैं। इसके स्वीकार करनेसे व्यक्ति तो प्रतिष्ठित होता ही है पर समाजको भी अपने व्यवहारकी दिशा निश्चित करनेमें सहायता मिलती है। ऐसा सर्वोपयोगी है यह अध्यात्म-समाजवाद । मेरी समझसे यदि विश्व अतीतमें की गई भूलोंपर विजय पाना चाहता है तो उसे इसके स्वीकार करनेमें जरा भी हिचकिचाहट नहीं होनी चाहिये। हम उस दिनकी प्रतीक्षामें है जिस दिन इस भावनाको चरितार्थ होते हुए देखेंगे। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012004
Book TitleFulchandra Shastri Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJyoti Prasad Jain, Kailashchandra Shastri
PublisherSiddhantacharya Pt Fulchandra Shastri Abhinandan Granth Prakashan Samiti Varanasi
Publication Year1985
Total Pages720
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size18 MB
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