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________________ ४५६ : सिद्धान्ताचार्य पं० फूलचन्द्र शास्त्री अभिनन्दन ग्रन्थ ( कलश १३९) हेयोपादेय विचार शुद्ध चिद्रूप उपादेय, अन्य समस्त हेय । ( कलश १४१ ) विकल्पका कारण 'कोई ऐसा मानेगा कि जितनी ज्ञानकी पर्याय है वे समस्त अशुद्धरूप हैं सो ऐसा तो नहीं, कारण कि जिस प्रकार ज्ञान शुद्ध है उसी प्रकार ज्ञानकी पर्याय वस्तुका स्वरूप है, इसलिए शुद्धस्वरूप है । परन्तु एक विशेष - - पर्यायमात्रका अवधारण करनेपर विकल्प उत्पन्न होता है, अनुभव निर्विकल्प है, इसलिए वस्तुमात्र अनुभवने पर समस्त पर्याय भी ज्ञानमात्र है. इसलिए ज्ञानमात्र अनुभव योग्य है ।" ( कलश १४४ ) अनुभव हो चिन्तामणि रत्न है 'जिस प्रकार किसी पुण्यवान् जीवके हाथमें चिंतामणि रत्न होता है, उससे सब मनोरथ पूरा होता है, वह जीव लोहा, ताँबा, रूपा ऐसी धातुका संग्रह करता नहीं उसी प्रकार सम्यग्दृष्टि जीवके पास शुद्ध स्वरूप अनुभव ऐसा चिन्तामणि रत्न है, उसके द्वारा सकल कर्मक्षय होता है । परमात्मपदकी प्राप्ति होती है । अतीन्द्रिय सुखकी प्राप्ति होती है । वह सम्यग्दृष्टि जीव शुभ अशुभरूप अनेक क्रियाविकल्पका संग्रह करता नहीं, कारण कि इनसे कार्यसिद्धि होती नहीं ।' ( कलश १५३) सम्यग्दृष्टिके दृष्टान्त द्वारा वांछापूर्वक क्रियाका निषेध - 'जिस प्रकार किसीको रोग, शोक, दारिद्र बिना ही वांछाके होता है उसी प्रकार सम्यग्दृष्टि जीवके जो कोई क्रिया होती हैं सो बिना ही वांछाके होती है ।" ( कलश १६३) कर्मबन्धके मेटनेका उपाय -- 'जिस प्रकार किसी जीवको मदिरा पिलाकर विकल किया जाता है, सर्वस्व छीन लिया जाता है, पदसे भ्रष्ट कर दिया जाता है उसी प्रकार अनादि कालसे लेकर सर्व जीवराशि राग-द्वेष-मोहरूप अशुद्ध परिणामसे मतवाली हुई है । इससे ज्ञानावरणादि कर्मका बन्ध होता है । ऐसे बन्धको शुद्ध ज्ञानका अनुभव मेंटनशील है, इसलिए शुद्ध ज्ञान उपादेय है ।' ( कलश १७५) द्रव्यके परिणाम के कारणोंका निर्देश -- 'द्रव्यके परिणामका कारण दो प्रकारका है - एक उपादान कारण है, एक निमित्त कारण है । उपादान कारण द्रव्यके अन्तर्गभित है अपने परिणाम पर्यायरूप परिणमनशक्ति वह तो जिस द्रव्यकी उसी द्रव्यमें होती है, ऐसा निश्चय है । निमित्त कारण - जिस द्रव्यका संयोग प्राप्त होनेसे अन्य द्रव्य अपनी पर्यायरूप परिणमता है, वह तो जिस द्रव्यकी उस द्रव्यमें होती है, अन्य द्रव्यगोचर नहीं होती ऐसा निश्चय है । जैसे मिट्टी घट पर्यायरूप परिणमती है । उसका उपादान कारण है मिट्टीमें घटरूप परिणमनशक्ति । निमित्त कारण है बाह्यरूप कुम्हार, चक्र दण्ड इत्यादि । वैसे ही जीवद्रव्य अशुद्ध परिणाम मोह राग द्वेषरूप परिणमता है। उसका उपादान कारण है जीवद्रव्य में अन्तर्गर्भित विभावरूप अशुद्ध परिणामशक्ति है ।" ( कलश १७६ - १७७) अकर्ता - कर्ता विचार 'सम्यग्दृष्टि जीवके रागादि अशुद्ध परिणामोंका स्वामित्वपना नहीं है, इसलिए सम्यग्दृष्टि जीव कर्ता नहीं है ।' 'मिथ्यादृष्टि जीवके रागादि अशुद्ध परिणामोंका स्वामित्वपना है, इसलिए मिथ्यादृष्टि जीव कर्ता है ।' ( कलश १८०) मात्र भेदज्ञान उपादेय है— Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012004
Book TitleFulchandra Shastri Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJyoti Prasad Jain, Kailashchandra Shastri
PublisherSiddhantacharya Pt Fulchandra Shastri Abhinandan Granth Prakashan Samiti Varanasi
Publication Year1985
Total Pages720
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size18 MB
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