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________________ ३० : सिद्धान्ताचार्य पं० फूलचन्द्र शास्त्री अभिनन्दन-ग्रन्थ सरस्वती पुत्र .श्री चन्दनमल 'चाँद', बंबई जीवनके लगभग साठ वर्ष जिस व्यक्तिने धर्म, दर्शन, साहित्य, सेवा, अध्यापन आदिमें लगाये और अपनी वाणी एवं लेखनी द्वारा जिन-वाणीका प्रचार किया, वह व्यक्ति है सरस्वती पुत्र पं० फूलचन्द्रजी शास्त्री । बहमखी प्रतिभाके धनी पंडितजीने मौलिक साहित्य सृजन, सम्पादन एवं समाज सेवाके विविध क्षेत्रोंमें महत्वपूर्ण सेवाएँ दी हैं । कर्म सिद्धान्तके बेजोड़ विद्वानके रूपमें आप सुविख्यात है । उनके ज्ञान, सम्पादन एवं सेवाकार्योंकी सुवास प्राप्त करता रहा हूँ। उनके सेवामय शतायुष्यकी शुभकामना करता हुआ मैं भी अभिनन्दनकी मालामें अपना एक पुष्प गुंफित कर रहा हूँ। अद्भुत ज्ञानके धनी .श्री भगतराम जैन, दिल्ली आदरणीय पं० फूलचन्द्रजी बहुत वर्षों तक अ०भा० दिगम्बर जैन परिषदके कार्यसमितिके सदस्य रहे व उन्होंने सदैव परिषद्की रीति-नीतिका समर्थन किया । अ० भा० दिगम्बर जैन परिषदका मैं सन् १९४५ से मन्त्री हूँ, जिसके कारण पूज्यनीय पं० फूलचन्द्रजीसे मेरा तभीसे सम्पर्क बना हुआ है। मुझे याद है कि १९५० में दिल्ली में होनेवाले परिषद्का अधिवेशन जो आदरणीय साहू श्रेयांसप्रसादजीकी अध्यक्षतामें बड़े विशालरूपसे हुआ था, उस समय आदरणीय पं० फूलचन्द्रजी, पं० महेन्द्रकुमारजी, पं० परमेष्ठीदासजी आदिने अधिवेशनमें प्रस्तत करने के लिए कुछ महत्त्वपर्ण प्रस्ताव भेजे थे, जिन्हें परिषदकी प्रबन्ध समितिने स्वीकृति प्रदान कर अधिवेशनमें रखने का निर्णय लिया । परमपज्य करनजी स्वामीके व्यापक प्रचार-प्रसार एवं साहित्य प्रकाशनको देखकर जिन तत्त्वोंने सदैव समाजका विघटन किया है, उन्होंने कांजी स्वामी एवं उनके प्रकाशनके विरोधमें भी व्यापक कार्य प्रारम्भ किये । उस समय समाजके मध्यस्थ विद्वानोंने विचार किया कि दिगम्बर जैन समाजके जो प्रमुख विद्वान् हैं, वे एक स्थानपर बैठकर सभी विवादग्रस्त विषयोंपर विचार विमर्श करें। जयपुरमें बहुत अधिक विद्वान् एकत्रित हुए और उन्होंने उन सभी विषयोंपर चर्चाय की । पं० फूलचन्द्र जीने जिस विद्वत्ताके साथ विरोधी विद्वानोंकी उठाई हई शंकाओंका समाधान किया, वह अद्भुत था।। उसकी साहित्यिक और सामाजिक सेवायें सदैव अनुकरणीय है। अभिनन्दनके इस शुभ प्रसंगमें श्रद्धासुमन उनके चरणोंमें अर्पित करता हूँ और यह भावना रखता हूँ कि उनकी छत्र-छाया समाजपर सदैव बनी रहे । युगचेतनाके प्रतीक • डॉ. जयकुमार जैन, मुजफ्फरनगर पूज्य पंडितजीमें युगचेतनाका स्वरूप मिलता है । 'वर्ण जाति और धर्म' में जनमङ्गलकारी युगचेतना सर्वत्र देखी जा सकती है । उनका जीवन एक सन्त, महापुरुष, उदारचरित तथा पुण्यात्मा मानवका जीवन है । विकत्थना एवं परनिन्दामें उन्हें कथमपि रसानुभूति नहीं होती है। पंडितजीका व्यक्तित्व एवं कृतित्व इतना महान् है कि यह सम्मान उन्हें कई दशक पूर्व ही मिल जाना चाहिये था । परन्तु मेरा विश्वास है कि संसारमें जिनका सम्मान विलम्बसे हआ, उन्हें चिरस्थायी कीर्ति मिली। पण्डितजी भी इसके अपवाद नहीं होंगे । साहित्यसपर्या के इस पवित्र अवसर पर पज्य पण्डितजीके प्रति मेरी 'रंकवराटिका' स्वीकार करें। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012004
Book TitleFulchandra Shastri Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJyoti Prasad Jain, Kailashchandra Shastri
PublisherSiddhantacharya Pt Fulchandra Shastri Abhinandan Granth Prakashan Samiti Varanasi
Publication Year1985
Total Pages720
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size18 MB
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