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________________ प्रथम खण्ड : २९ कतज्ञता-ज्ञापन .पं० पद्मचन्द्र शास्त्री, दिल्ली यदि समाज कृतज्ञ है तो मान्य पंडित श्री फुलचन्द्रजी सिद्धान्तशास्त्रीके उपकारोंको 'यावच्चन्द्रदिवाकरौ' मानना चाहिए । अपनी पीढ़ीके सम-सामयिक सिद्धान्त महारथियोंमें पंडितजीका नाम मूर्धन्य है। वे अपनी निर्भीकताके लिए भी प्रसिद्ध है । आगे-पीछेका ख्याल किए बिना सिद्धांत-पोषणका लक्ष्य उनके जीवनमें उनसे पूरा होता रहा है । वे सिद्धान्तमें अपने विषयके बे-जोड़ विद्वान् हैं-उन्हें हमारे नमन । एक बार जब मेरी नौकरी छूट गई और मैं सब ओरसे निराश हो गया कि एक दिन अचानक सड़कपर पंडितजीसे भेंट हो गई। बोले-भइया, क्या हाल है ? मैंने व्यथा सुनाई तो द्रवित हो उठे और बोलेतुम चिंता मत करो अभी मेरे पास काम करो, आदि । मुझे याद है और जीवन भर याद रहेगा कि उन्होंने मुझे 'एडवांस' आर्थिक सहायता दी, समाजसे मेरा परिचय कराया, मुझे काम दिलाया-मुझे संबल मिला । मैं आज जो हूँ, जैसा हैं उन्हींके आशीर्वादसे हैं। मेरी शक्ति नहीं कि मैं अपनी व परिवारकी ओरसे उनके उपकार-भारसे बे-बोझ हो सकूँ । उनके प्रति जितनी भी कृतज्ञताका ज्ञापन किया जाय मेरे लिए थोड़ा ही रहेगा। शुभ-कामना • श्री सुबोधकुमार जैन, आरा मैं पहली बार पं० फलचन्द्र जी शास्त्रीसे लगभग २२ वर्ष पूर्व उस समय मिला था जब कि बिहारके गवर्नर श्री अनन्तशयनम आयंगरने श्री जैन सिद्धान्त भवनकी हीरक जयन्तीकी अध्यक्षता करते हुए पं० फूलचन्द्र शास्त्री को अपने कर कमलोंसे सिद्धान्ताचार्यकी पदवी प्रदान की थी। जैनागमके शोधन एवं लेखनके क्षेत्र में पंडित जी ने जो कार्य किया है, वह अवश्य स्मरणीय रहेगा तथा जैन सिद्धान्तके आधुनिक आचार्यों में उनका नाम बराबर स्वर्णाक्षरोंमें लिखा जाएगा। आज जैन समाज उनका अभिन्दन कर रहा है, वह वास्तवमें उनका अभिनन्दन नहीं जैन समाजका अपना अभिनन्दन है । इस शुभ अवसरपर मैं उन्हें सादर श्रद्धांजलियाँ अर्पित कर रहा हैं। अद्भुत व्यक्तित्त्वके धनी •श्री सत्यन्धर कुमार सेठी, उज्जैन परम श्रद्धेय प्रकाण्ड सैद्धान्तिक महाविद्वान् पंडित फूलचंद्रजी साहब शास्त्री जैन जगत्के माने हुए अद्भुत व्यक्तित्त्वके धनी एक आदर्श विद्वान् है। जिन्होंने अपने जीवन कालमें मां सरस्वतीकी सेवा करके अपने आपको अमर बना दिया है। धवला, जयधवला और महाबन्ध जैसे महान् ग्रन्थोंका सम्पादन करके उनको प्रकाश में लानेका आपही की श्रेय है। आप एकमात्र सैद्धान्तिक विद्वान् है। आप प्राचीन पद्धतिके विद्वान् हैं । लेकिन आपके विचारोंमें उदारता है और हृदयमें विशालता है। आप संस्कृत और प्राकृत भाषाके महान् विद्वान् है फिर भी आपकी प्रवचन शैली इतनी सरल और सीधी है कि साधारणसे साधारण श्रोताके हृदयमें भी तत्त्वका प्रवेश हो जाता है और वह सही पकड़ कर लेता है । ऐसे महाविद्वान्के चरणों में श्रद्धा सुमन अर्पण करता हुआ मैं अपने आपको धन्य मानता हैं। और शुभ कामना करता हूँ कि यह महाविद्वान् चिरंजीवि बनकर माँ सरस्वतीकी सेवा करते रहें। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012004
Book TitleFulchandra Shastri Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJyoti Prasad Jain, Kailashchandra Shastri
PublisherSiddhantacharya Pt Fulchandra Shastri Abhinandan Granth Prakashan Samiti Varanasi
Publication Year1985
Total Pages720
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size18 MB
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