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________________ ३७२ : सिद्धान्ताचार्य पं० फूलचन्द्र शास्त्री अभिनन्दन-ग्रन्थ यह भी एक प्रमाण है, इसलिए इससे भी यही सिद्ध होता है कि दमोह जिलेमें कुण्डलपुरके पासका कुण्डलगिरि १२वीं शताब्दीमें भी इसी रूपमें माना जाता रहा है। यहाँ जिस पटावलिका हमने उल्लेख किया है उसका सम्बन्ध सीधा गौतम गणधर तक पहुँचता है। यह पट्टावलि गौतमगणधरसे प्रारम्भ होती है फिर भी इस पट्टावलिको जो द्वितीय भद्रबाहूसे प्रारम्भ किया गया है उसका कारण यह प्रतीत होता है कि द्वितीय भद्रबाहुके कालमें ही बलात्कारगणकी स्थापना हो गयी थी। इसीलिये इस पटावलिको बलात्कारगणकी पटटावली भी कहा जाता है। पहिले तो पट्टधर जितने भी आचार्य होते थे वे सब मुनि ही होते थे। और यह परम्परा १३वीं शताब्दी तक अक्षुण्ण चालू रही आई। किन्तु वसंतकीर्ति मुनिके कालमें पट्टपर बैठने वाले मुनियों द्वारा वस्त्र रम्भ हो जानेसे'. वे भटटारक शब्द द्वारा अभिहित किये जाने लगे। इस पटटावलिको केवल भट्टारक पट्टावलि कहना उपयुक्त नहीं है । अतः १२ वीं शताब्दीमें कुण्डलगिरिके जो पट्टधर आचार्य महाचन्द्र हुए हैं वे भट्टारक न होकर मुनि ही थे, भट्टारक नहीं, यह स्पष्ट है । इतने विवेचनसे भी निश्चित हो जाता है कि दमोह जिलेका कुण्डलपुरके पासका कुण्डलगिरि ही सिद्धक्षेत्र है । त्रिलोकप्रज्ञप्तिमें जिस सिद्ध कुण्डलगिरिका उल्लेख है वह यही है, अन्य नहीं, अन्तिम केवली श्रीधर मुनिराज यहींसे मोक्ष गये हैं। ३. कुण्डलगिरि सिद्धक्षेत्र लगभग २५०० वर्ष पुराना है। यहाँ पहाड़ पर एक प्राचीन जिनमन्दिर है। इसे बड़े बाबाका मन्दिर कहते हैं। यहाँ एक कुण्डलपुर ग्राम के परिसर में और दूसरा कुण्डलगिरि पहाड़के तलभागमें दो मठाकार प्राचीन जिनमन्दिर भी बने हुए हैं। सरकारी पुरातत्त्व विभाग द्वारा इन मन्दिरोंको ब्रह्ममन्दिर कहा गया है । ये तीनों ६वीं शताब्दी या उसके पहलेके हैं इन्हें सूचित करनेवाला एक शिलापट्ट दमोह रेलवे स्टेशनपर लगा हुआ है। शिलापट्टमें जो इबारत लिखी गई है उसका हिन्दी रूप इस प्रकार है-दि० जैन तीर्थस्थान कुण्डलपुर । - जैनियोंका तीर्थस्थान कुण्डलपुर दमोहसे लगभग २० मील ईशानकी तरफ है । यहाँपर छठवीं सदीके दो प्राचीन ब्रह्ममन्दिर हैं। इनके सिवाय ५८ जैन मन्दिर हैं। मुख्य मन्दिरमें १२ फीट ऊँची पद्मासन महावीरकी प्रतिमा है । यहाँपर हर साल माघ महीनेके अन्तमें जैनियोंका बड़ा भारी मेला भरता है। KUNDALPUR "About 20 miles to the north east of Damoh is Kundalpur, A Scred Place of the Jains Besides two early Brahmanical temples of the 6th centrury A. D. There are 58 modern Jaina temples at this place. The principal temple contains 12 feet high Image of Mahavira in meditation." A very large fair is held here in the month of Magh (February-March) Every Year, Note : For site plan see drg No. R-36275. यह दमोह स्टेशनपर लगे हए शिलापट्टकी अविकल प्रतिलिपि है। उसमें ५८ जिनमन्दिरोंके साथ दो ब्रह्ममन्दिरोंका उल्लेख कर उन्हें पुरातत्त्व विभाग द्वारा छठवीं सदीका स्वीकार किया गया है। इतना अवश्य है कि ५८ जिनमन्दिरोंमें बडे बाबाका मख्य मन्दिर और दो ब्रह्ममन्दिर छठवीं सदीके है। शेष जिन मन्दिर १. भट्टारक सम्प्रदाय पृ० ९३ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012004
Book TitleFulchandra Shastri Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJyoti Prasad Jain, Kailashchandra Shastri
PublisherSiddhantacharya Pt Fulchandra Shastri Abhinandan Granth Prakashan Samiti Varanasi
Publication Year1985
Total Pages720
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size18 MB
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