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________________ ३५८ : सिद्धान्ताचार्य पं० फूलचन्द्र शास्त्री अभिनन्दन-ग्रन्थ डड़िया, डोंगर, सिरवार पद्मा- कोवर, घूघर, डंडिया, पटवार वारके स्थानमें पटवा वत । छपा है। कोइल्ल पलावत, बुद्धवारी, चाची, चुचा, चांचरौ, पपिद, कठिया, दोनोंके मिलते गगाडिम्म, उदाडिम्म, कस- सिसयारी, कुशवाल, विमहा, जुलते हैं। वारो, भामार, पाहूडिम्म, उदहा, इंदारी, खेकवार, मिडला, इंगली चिंगुली सिंधवारो, गहोटी फठा, पपहद । लोइल्छ सेतगागर, कलगा, गढ़िया, सेतगागर, ठाड़िया, मनहारो, एक ही हैं छोड़ाडिम्म, रुहारौडिम्म नंगाइ- किरवार, इंगलीचिगली, कोइल्ल चडिम्म, वसुहाडिम्म, खटहा- रह्यरो, खरहन, सुराइच, डिम्म, बगहा डिम्म-घोघठ, लुहारच, खकोटा, नगावत .लुहाइच, वराहन भरिल्ल विग, खोना, अंग, कुवा, पगुवा, भगवंता, विगहा, विग, खौना, वही है मारू, कुनाडिम्म, भगवत, इंग, अगा, पुनहौरा, भारू, विगहा, गाहेडिम्म, हारूडिम्म । पहुना, कुवा कुहारी, हिडिम्म । माडिल्ल माडू, रूदा, उदहा, वाहिल- माड, हंसारी, सकती, रोदा, भटारो और डिम्म, सिकाडिम्म, गमलाडिम्म, खितवां, वेलाडिम, भटारो, भटारी दोनों वरायचडिम्म, झांझाडिम्म खोखर, सितावर, स्वितागांगर, हैं। शेष दोनों भटियाडिम्म, भटोहाडिम्म, इंगली, नगाइच । एक है। लालडिम्म, रूपाडिम्म । कोछल्ल बहुरिया, सर्वछोला, मसता, बहुरिया, मसो, रेंचा, गंगवा, स्त्रि कुछाछरो, उछिल्ल, गग- वसबल, कुछाछरे, सर्वछोला, वारो, सुपहाडिम्म, वसवाल, ध्याइच, सुवहा, ओछल, घिया, सिरपरो वगुयाडिम्म विसासर, बुधवारौ। फागुल्ल छीनर, मालेडिम्म, भगीली, झिझारो छोवर, फागुल, कुटहटी वराइच, वडोहाडिम्म, जाजा- रिहारौ, कठल, मंगला, वलासदा, डिम्म, कफाडिम्म, सिहर पटहारौ बुधारौ, जजेसुर, गांगरो, पुनहीरी, नाहडिम्म, वसाइच कष्हा, फागुल्ल। ये बारह गोत्रोंके १४४ मूर (मूल) या शाखा हैं । इनमें बड़ी गड़बड़ है। जैसा कि हम पहले सूचित कर आये हैं, इस अन्वयके १२ गोत्रोंमेंसे प्रत्येक गोत्रके अन्तर्गत जो १२, १२ मूल हैं वे ग्रामोंके नामोंके आधार पर ही हैं । अर्थात् जिस ग्रामके रहवासी जिस कुटुम्बने इस अन्वयको स्वीकार किया उस कुटुम्बका वही मूल हो गया। इसकी पुष्टिमें हम यहाँ पर एक तुलनात्मक सूची दे रहे हैं। वह इस प्रकार है१. ईडरीमूल ईडरशहरमें रहने वालोंका मूल ईडर है । २. रक (ख) या मूल रखयाल ग्राम (सौराष्ट्र) में रहनेवालों का मूल रखयाल है। ३. नारद मूल मारवाड़के मेड़ना जिलेके पार्श्वनाथ मन्दिरमें नारदपुरीका उल्लेख है। ४. कठिया मूल काठियाबाडके निवासियोंको इस अन्वयमें सम्मिलित होनेपर उनका मूल 'कठिया' प्रसिद्ध हुआ। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012004
Book TitleFulchandra Shastri Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJyoti Prasad Jain, Kailashchandra Shastri
PublisherSiddhantacharya Pt Fulchandra Shastri Abhinandan Granth Prakashan Samiti Varanasi
Publication Year1985
Total Pages720
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size18 MB
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