SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 396
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ चतुर्थ खण्ड : ३५९ ५. दुगायत मूल दो नदियोंका संगमस्थान (गुजरात) उसके आस-पास रहनेवालोंका मूल दुगायत हुआ । ६. पदमावतमूर गुजरातके इस शहरमें रहनेवाले । ७. बंसी मूल बंसी पहाड़पुर स्टेशनमें रहनेवालों। ८. बेला बेला स्टेशन (सौराष्ट्र) डिम या डिम्बका अर्थ छोटा होता है। बेलाडिम, बेला नामका छोटा ग्राम । ९. बहुरिया मूल बहेरिया रोड़ स्टेशन है । बहेरियामें रहनेवाले । १०. मांडू माडलगढका संक्षिप्त नाम मांडू है । यहाँ रहनेवाले । ११. कुआ गुजरातमें एक ग्रामका नाम कुआ या पाटना कुआ एक दूसरा गाँव रानकुआ भी है। १२. कठा कठासा स्टेशन (यहाँ रहनेवाले) १३. पटवा मूला पटवारा स्टेशन १४. लोटा मूल लोटासा स्टेशन १५. छना मूल छना खड़ा स्टेशन १६. बाला मूल बाला रोड स्टेशन, ग्रामका नाम बाला या गुजरात का बल्लापुर ग्राम। १७. डेरिया मूल डेरोन स्टेशन (तत्सम) १८. डंडिया मूल डंडिया एक खेलका नाम है उस परसे इस नामसे प्रसिद्ध । १९. देदा मूल दुद्दा स्टेशन २०. किड मूल किडिया नामका नगर है (तत्सम) २१. धना मूल धनाखड़ा स्टेशन का नाम इस ग्रामके रहवाली २२. सर्वछोला मूल छोला ग्राम । २३. उजया मूल उजेडिया ग्राम (तत्सम) , २४. किड मूल किडिमा नगरका नाम (तत्सम) २५. डेरिया मूल डेरोन स्टेशन २६. सर्व छोला मूल छोला स्टेशन २७. गोदू मूल गोदौ ग्राम (गोदौ ग्रामः) २८. तका मूल टाका टुक्का ग्राम (तत्सम) ,, २९. पद्मावती मूल पद्मावती शहर (गुजरातमें), ये कतिपय मूल है । जिनमेंसे कई ग्रामोंके नाम तो गजरातमें उसी रूपमें पाये जाते हैं। कई मूल ऐसे हैं जिनमें ग्रामका पूरा नाम प्रयुक्त हुआ है । कई मूल ऐसे भी हैं जिनमें ग्रामके प्रारम्भ या अन्तके भागको छोड़कर मूलके रूपमें उसे स्वीकार किया गया है। जैसे 'सत्यभामाम' सत्य पदको छोड़कर 'भामा' पदसे ही सत्यभामाका ग्रहण हो जाता है। कई मूल ऐसे भी हैं जिनमें तत्सम ग्रामके नामसे ही उसका मूल ग्रहण हो जाता है । यदि गुजरात और मेवाड़ प्रदेशके ग्रामोंके पूरे नामोंकी सूचीके आधारसे मूलोंके नामोंकी खोज की जाय तो बहुत ही कम ऐसे मूलोंके नाम शेष रह जायेंगे जिन मूलोंके नामपर ग्रामोंका नाम वर्तमानमें उपलब्ध नहीं हो सकेगा । उन ग्रामोंका या लोप हो गया होगा या नाम बदल गया होगा। निष्कासन ___मैं 'प्राग्वाट इतिहास को पूरी तरहसे देख रहा था। उससे ऐसा लगता है कि वहाँके राजाओंसे मिल कर श्वेताम्बरोंने गुजरातसे दिगम्बरोंका निष्कासन कराया था। प्राग्वाट इतिहासमें पृ० १२ और २२० में Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012004
Book TitleFulchandra Shastri Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJyoti Prasad Jain, Kailashchandra Shastri
PublisherSiddhantacharya Pt Fulchandra Shastri Abhinandan Granth Prakashan Samiti Varanasi
Publication Year1985
Total Pages720
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy