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________________ चतुर्थं खण्ड : ३५७ उदय हो गया तब उन्होंने आजीविका के साधनके रूपमें कृषि, पशुपालन और वाणिज्यको स्वीकार करना ही उचित समझा । कुछ मनीषी कहते हैं कि जैनधर्म अहिंसा प्रधान धर्म है, इसलिये अहिंसा के साथ क्षात्रवृत्तिका मेल नहीं बैठता । पर यह उनकी कोरी कल्पनामात्र है । इतिहास इसका साक्षी है । मौर्य चन्द्रगुप्त भारतका प्रथम सम्राट् था यह सुविदित सत्य है । समय-समय पर और भी अनेक राजा-महाराजा हुए हैं जिन्होंने क्षात्रधर्मका सुन्दर निर्वाह करते हुए अपने राज्यमें सुव्यवस्था बनाये रखी है । धर्म इसमें बाधक नहीं है । संकल्प पूर्वक हिंसा आदिको त्याग देना गृहस्थ धर्मका लक्षण है । चोर, डाकू और समाजविरुद्ध आचरण करनेवालोंसे समाजकी रक्षा करना क्षात्रधर्मका प्रमुख लक्षण है । यही कारण है कि जो जैनधर्म का पालन करते हुए शस्त्र धारण कर समाजकी रक्षा करता है, वह समाजमें महनीय माना जाता है । यह हमारे पूर्वजोंके जीवनकी एक झांकी है । इससे पौरपाट अन्वयको अनेक गणोंमें विभक्त कर उसका संगठन किस प्रकार किया गया था, उसका पता लगता है। यह (पौरपाट) अन्वय १२ गोत्रोंमें विभक्त था, यह तो हम पहले ही बतला आये हैं । अब देखना यह है कि प्रत्येक गोत्रके अन्तर्गत जो १२, १२ मूल गिनाये गये हैं वे कौन-कौन हैं आगे इसकी सूची दी जाती है गोत्र गोहिल्ल गोइल्ल वाछल्ल वांझल्ल परवारबन्धु सुहला, उदया, गाहे, बार, छिनए, कठोरा, बड़े मारग, दुहाऐ, झमला महुडिम्म, ताखा, नगाडिम्म | वैसाख, सोला, करकच, खारल्ले, बरहद, गोसिल्ल, गांगरो, गोधू, खाठी, चाची, छोड़व, वारी । ड्याडम्म देदा, डेरिया, ड्याडिम्म, डुही, चन्दाडिम्म, रमाडिम्म, अहीडिम्म, रका, वाला, छिनकन, सकेसरा वासो, ईडरी, रकिया, लालू, शिह्नम्मडिला, देवसा, सेवती, दुगायत, बीबीकुट्टम, कनहा, उजए, पद्मावत । उजिया, धना, दीपाकर, लोटा, पठवल, सीग, उठा, घघर, कासिल्ल छम छल, पंचलौर, नाहछ, पाहू, छोटा, रकाडिम्म कदोहा, बड़ोसर, अहिया डिम्म कठोहा, जगेसर, नागच । Jain Education International जबलपुर सहारमडिम्म, माहो, अँधियारो वारू, किढमा, बड़ोमारग ममला रुहारो, अंडेला, छितरा नगाडिम्म, तका वारद, गोसिल, गोदू, किरकिच, चांदे, सिदुआ, छोड़ा, वैसाखिया, वार, सहोला, खराइच, गांगरे भाभरी, धमाछल, छोहर, भभारो, बहुहठी किठोदा, अओड़िम, पंचरतन, कदोहा, सांझी, बड़ेसुर, नारद, बड़ेसुर देदा, डुही, डेरिया, धतकत, चन्द्राडिम्म, दका, रामडिम्म, कठा सकेसर, सदावदा वाला वीवीकुढ्ढम, रकया, वंसी, लालु, ऐंडरी, वागु, दुगाइच, पद्मावती, द्योतीस्योती, कनहा, शिलाडिम । धना, दिवाकर, लोटा, उजया, उठा, डंगारी, सिगा, सिवारौ, For Private & Personal Use Only अशोकनगर जबलपुर और अशोक नगरके मूल मिलतेजुलते हैं जबलपुरके और अशोक नगरके मूल एक ही हैं । मात्र कवितामें बहुहठी है और अर्थ में बहूटी है । एक ही हैं दोनोंके दोनोंके एक ही हैं कवितामें चोवर अर्थ में चीवर तथा पट www.jainelibrary.org
SR No.012004
Book TitleFulchandra Shastri Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJyoti Prasad Jain, Kailashchandra Shastri
PublisherSiddhantacharya Pt Fulchandra Shastri Abhinandan Granth Prakashan Samiti Varanasi
Publication Year1985
Total Pages720
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size18 MB
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