SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 101
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ७० : सिद्धान्ताचार्य पं० फूलचन्द्र शास्त्री अभिनन्दन-ग्रन्थ ने. : अच्छा यह बताइये कि टीका करने में कौन-कौन सी सावधानियां रखनी चाहिए । फू. : टीका करनेमें मूलको ध्यानमें रखना चाहिए । हमारे आचारमें एक व्यक्ति स्वातंत्र्य स्वावलंबनके आधारपर हमारा लेखान चलना चाहिए क्योंकि ये सब स्वतंत्रताके पोषक ग्रन्थ हैं। चाहे चरणानुयोग हो या करणानुयोग हो, प्रमाण युक्त उदाहरण है उसमें तो कोई बात ही नहीं है। चरणानुयोग है-हमारी आध्यात्मिक वृत्तिके अनुरूप । हमारी प्रवृत्ति क्या होती है ? आध्यात्मिक वृत्ति अगर हमारी ऐसी निष्कषाय की है, तो हमारा उठना-बैठना भी उसी जातका होगा । ने. : भाषा कैसी रखते हैं आप? फु. : भाषा तो हमारी चालू है, सरल है। कहीं पारिभाषिक शब्द आ जाते है कई जगह स्पष्ट कर देते हैं, कई जगह वैसा ही चलता है। जैसे अनुवाद है तो उसमें विशेषार्थमें स्पष्ट करेंगे, अनुवादमें नहीं। अनुवाद तो जैसा मूल होता है, वैसा ही वहाँ लिख देते हैं । विशेषार्थमें उसे स्पष्ट कर देते हैं । ने. : टीकाकार बनने में क्या सावधानियाँ रखना चाहिए, जैसे कि मैं टीकाकार बनना चाहता हूँ तो आप मुझसे क्या कहेंगे। फू. : पहले तो विषय स्पष्ट होना चाहिए । ने.: पहली बात, दुसरी...." फ.: दूसरी भाषापर अधिकार होना चाहिए, तीसरे अनुगम भी होना चाहिए थोड़ा। अनुगमका मतलब यह है कि उस विषय सम्बन्धी जानकारी दसरे ग्रन्थोंसे भी हमारी तुलनात्मक जानकारी परिपक्व होनी चाहिए । ये तीन बातें अगर किसीको ध्यानमें हैं, तो टीकाकार हो सकता है । ने. : यह बहुत जरूरी है । आज लोग इसका ध्यान रखते हैं या नहीं। फ. : कोई रखते हैं कोई नहीं रखते हैं। यह चलता तो है। अखबार ये जो छापखाना आ गया प्रेस तो उससे तात्त्विक दृष्टिसे तो हानि ही हुई है । ने. : आपका प्रमुख योगदान या अवदान धर्मके क्षेत्रमें है, दर्शनके क्षेत्रमें या संस्कृतिके क्षेत्रमें है या समाजके क्षेत्रमें क्या है ? फू. : असलमें हमारे योगदानकी बात करते हैं, आपने तो मुख्य रूपसे समाजके निर्माणको भी दृष्टिमें रखा और तत्वज्ञानको भी मुख्यतयासे हमने ध्यानमें रखा और दोनोंको ध्यानमें रखा। . ने.: जैसे रेलकी पटरियाँ होती हैं और उसपर पहिया दौड़ता है, वैसे ही इन दो पटरियोंपर आपका साहित्य चलता है। फ. : चलता है । तत्त्वज्ञान सामने रखा, समाजके निर्माणको भी ध्यानमें रखा। हम विद्वत् परिषद्के अध्यक्ष बन भी गये थे तो हमने एक बात लिख दो उसमें अपने व्याख्यानमें कि भाई आप यह तो मानते ही हो कि हमारे जो शास्त्र मिलते हैं उत्तरकालमें उनमें पांचवें स्थानपर शूद्रको स्थान मिला है । तो इतना तो मानो आप लोग, जिसके कि आधारपर जो हमारे प्रमुख विद्वान् थे, जिनको समर्थन करना चाहिए, वे चुप रहे । ने. : उनकी रोजी-रोटीका प्रश्न था । जैन सात्यि जो अपना है उसमें कोई नया मोड़ लेना चाहते हैं-नया मोड़ देना चाहते हैं । फू. : नया मोड़-तो जातिवाद पहले खत्म होना चाहिए । ये जातिवाद जबतक चलेगा तबतक जैन समाजमें बँटवारा रहेगा। जो समितिने साहित्यिक धर्मकी प्रवृत्ति जिसे हम कहते है हुई नहीं है, जातिवादके Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012004
Book TitleFulchandra Shastri Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJyoti Prasad Jain, Kailashchandra Shastri
PublisherSiddhantacharya Pt Fulchandra Shastri Abhinandan Granth Prakashan Samiti Varanasi
Publication Year1985
Total Pages720
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy