SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 154
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ देर्शनचारित्रमोहनीयकषायनोकषायवेदनीयाख्यास्त्रिद्विषोडशनवमेदाः सम्यक्त्वमिथ्यात्वतदुभयानि कषायनोकषायावनन्तानुबन्ध्यप्रत्याख्यानप्रत्याख्यनावरणसंग्वलनविकल्पाश्चैकशः क्रोधमानमायालोमा हास्यरत्यरतिशोकभयजुगुप्सास्त्रीपुनपुंसकवेदाः ॥ १० ॥ नारकतैर्यग्योनमानुषदैवानि ॥ ११ ॥ गतिजातिशरीराङ्गोपाङ्गनिर्माणबन्धनसङ्घातसंस्थानसंहनन - स्पर्शरसगन्धवर्णानुपूर्वगुरुलघूपधातपराघातातपोद्योतो - च्छ्वासविहायोगतयः प्रत्येकशरीरत्रससुभगसुस्वरशुभसूक्ष्म । दर्शनचारित्रमोहनीयाकपायकषायवेदनीयाख्यास्त्रिद्विनवषोडशमेदाः सम्यक्त्वमिथ्यात्वतदुभयान्यकषायकषायौ हास्यरत्यरतिशोकभयजुगुप्सास्त्रीपुन्नपुंसकवेदा अनन्तानुबन्ध्यप्रत्याख्यानप्रत्याख्यानसंज्वलनविकल्पाश्चैकशः क्रोधमानमायालोमाः -स० रा० लो। २ किसी को यह इतना लम्बा सूत्र नही जंचता उसको पूर्वाचर्य ने जो जवाब दिया है वही सिद्धसेन उद्धृत करते हैं "दुर्व्याख्यानो गरीयाश्च मोहो भवति बन्धनः । न तत्र लाघवादिष्टं सूत्रकारेण दुवचम् ॥" ३ -नुपूर्व्यागु० -स. रा. लो. । सि-वृ० में 'आनुपूर्व्य' पाठ है । अन्य के मत से सिद्धसेन ने 'आनुपूर्वी' पाठ बताया है । दोनों के मत से सूत्र का भिन्न भिन्न आकार कैसा होगा यह भी उन्होने दिखाया है।
SR No.011620
Book TitleTattvarthadhigam Sutrani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSukhlal Sanghavi
PublisherJain Sahitya Prakashan Mandir
Publication Year1940
Total Pages588
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy