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________________ १६२ प्रकृतिस्थित्यनुभावप्रदेशास्तद्विधयः ॥ ४ ॥ आद्यो ज्ञानदर्शनावरणवेदनीयमोहनीयायुष्क नामगोत्रान्त रायाः ॥ ५ ॥ पश्ञ्चनवव्द्यष्टाविशतिचतुर्द्विचत्वारिशद द्विपश्ञ्च भेदा यथाक्रमम् ॥ ६ ॥ मयादीनाम् ॥ ७ ॥ चक्षुरचक्षुरवधिकेवलानां प्रचला स्त्यानगृद्धिवेदनीयानि च ॥ ८ ॥ सदसद्वेद्ये ॥ ९ ॥ निद्रानिद्रा निद्राप्रचलाप्रचला १ – स्यनुभव - स० रा० श्लो० । २ - नीयायुर्नाम स० श० श्लो० । W ३ - भेदो - रा० । ४ मतिश्रुतावधिमनः पयर्यकेवलानाम् स० रा० श्लो० । किन्तु यह पाठ सिद्धसेन को अपार्थक मालूम होता है । अकलङ्क और विद्यानन्द श्वे० परंपरा संमत लघुपाठ की अपेक्षा उपर्युक्त पाठ को ही ठीक समझते हैं । ५ स्त्यानार्द्ध - सि० । सि भा० का पाठ 'स्त्यानगृद्धि' मालूम होता है क्योकि सिद्धसेन कहता है कि- स्त्यानार्द्धरिति वा पाठ: । ६ – स्त्यानगृद्धयश्च स० रा० श्लो० । सिद्धसेन ने वेदनीय पद का समर्थन किया है ।
SR No.011620
Book TitleTattvarthadhigam Sutrani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSukhlal Sanghavi
PublisherJain Sahitya Prakashan Mandir
Publication Year1940
Total Pages588
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size14 MB
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