SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 112
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 100 योगशास्त्र. करवाथी शरीरनी वृद्धि थाय ने, अने शक्ति उपरांत करवाथी दय थायजे. हवे व्रतधारी एटले अनाचारने तजीने सदाचारमा प्रवर्तनार, अने ज्ञानवृछ एटले बोडवालायक तथा ग्रहण करवालायक वस्तुउँने जाणनार; तेनी सेवा करवी, वोलाव, श्रासन श्राप, तथा ते श्रावे त्यारे सामा श्रावी उजा थवू, इत्यादि करनार, ते व्रतधारी तथा ज्ञानीने पूजनार कहेवाय. कारण के तेउनी सेवा करवाथी, ते कल्पवृक्षानी पेठे उपदेश घारा फलदायक थाय . तथा पोष्यपोषक एटले, मा बाप, स्त्री, बोकरां श्रादिक अवश्य पोषवा लायकनुं पोषण करनार. तथा लांबा कालसु. धिना श्रर्थ अनर्थनो विचार करनार, ते दीर्घदी कहेवाय. हवे विशेषज्ञ एटले खपरनां कार्य अने अकार्यना अंतरने जाणनार; अथवा पोताना गुणदोषने जाणनार. कहुं ने के, माणसें हमेशां, मारामां पशुतुल्य शुं ? तथा सत्पुरुषनी तुल्य शुं बे? एम पोताना गुणदोषनो विचार करवो. तथा परना करेला उपकारने जाणनार ते कृतज्ञ कडेवाय. तथा "लोकवसन" एटले लोकोने विनयादिक उत्तम गुणोथी प्रिय थ पडेलो. कारण के, गुणवान् प्रत्ये कोण प्रीतिवालो थतो नयी? कारण के, जे लोकवडूज न होय, ते केवल पोतानेज नुकशानकारक थाय , तेम नहीं, पण तेना धर्मानुष्ठानने पण बीजा दूषण लगाडे , अने तेथी परप्रत्ये पण बोधि लाजना नाशनो हेतु ते थाय . तथा “सलऊ" एटले लजा सहित. कारण के, लजावान् माणस प्राणोनो नाश थाय, तो पण पोतानी प्रतिझाने तजता नथी. कह्यु के, गुणोना समूहने उत्पन्न करनारी लजा प्रत्ये अत्यंत शुक हृदयथी, अनुवर्तन करनारा लोको, कदाच प्राण जाय, तोपण पोतानी प्रतिज्ञाने तजता नथी. तथा “सदय" एटले दुःखी प्रा. जिउने दुःखमांथी डोडाववानी छायी वर्चनारा ते “सदय" कहेवाय. कारण के धर्मनुं मूल दया कहेली . माटे अवश्य दया करवी जोश्ये, कडं बे के, जेवा पोताना प्राण वहाला , तेवा सघला प्राणिने पण , माटे माणसें पोतानी पेंठेज परनी दया चिंतववी जोयें तथा “सौम्य" एटले निर्जय श्राकृतिवालो; कारण के क्रूर माणस लोकोने उद्वेगनुं कारण थ पडे . वदी परोपकारी पण थकुं; कारण के, परोपकारी माणस, सर्वनां नेत्रो प्रत्ये अमृतांजनतुल्य थाय बे तथा अंतरंग व वैरीने जी
SR No.011619
Book TitleYogshastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1899
Total Pages493
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size25 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy