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________________ एए प्रथमप्रकाश. ना नाशथी, धर्म अने कामनो नाश थवावडे करीने कल्याण यतुं नथी. अने लोनीनुं धन, राजा, पित्राश, अथवा चोरोने उपनोगमां श्रावे ; धर्म के काम निमित्तें खरचातुं नथी माटे तेथी गृहस्थने त्रणे वर्गोने बा. धा करवी अनुचित . वली कदाच दैवयोगें बाधानो संजव थाय, तोपण उत्तरोत्तरनी बाधाथी पूर्वनी बाधार्नु रक्षण कर, जेम के कामने बाधा आवे त्यारे धर्म अने अर्थने थती बाधानुं रक्षण करवं; कारण के, ते बने होवाथी कामनी प्राप्ति सुलन बे. अने काम तथा अर्थने बन्नेने ज्यारे वाधा श्रावे त्यारे धर्मनुं रक्षण करवू; कारणके धर्म तेर्ड बन्नेनुं मूल ले. _हवे जेने पर्वा दिक तिथिनो प्रतिबंध नथी ते अतिथि; उत्तम आचारमां रक्त, तथा सघला लोकोमा प्रसिद्ध; ते साधु कहेवाय; तथा धर्म, अर्थ अने काम आराधवानी जेनी शक्ति क्षीण थएनी होय , ते दीन कहेवाय. ते त्रणेनी पोतानी शक्ति प्रमाणे अन्नपानादिकथी उचित नक्ति करनार. कारण के, एक बाजुये क्रोडो गुणो, तथा बीजी बाजुये उचितता; तेउँ बन्ने सरखां ; केमके उचितता विनानो गुणोनो समूह फेर तुव्य ने. हवे अनिनिवेशरहित; एटले; नीति विनानां कुःखदायि कार्योंनो करनार. कडं ने के, अहंकार ले ते,अन्याय मुर्गुण आदिकना आरंजश्री नीच लोकोने उपभव करे , जेम सामे पूरे तरनार माउलाने पण नदीनो प्रवाह उपभव करे . वली नीच माणसने पण को वखते (खलताथी) कदाग्रहरहितपणुं होय . हवे गुणपदपाति एटले, सजनता, उदारता, डाहापण, स्थिरता, प्रिय वचनपणुं, इत्यादि पर तथा पोताने उपकार करनारा गुणोमा पक्षपात राखनार पक्षपात एटले तेवाउँनु बहुमान, प्रसंग, सहायता विगेरे अनुकूल प्रवृत्ति करवी ते. अने तेवागुणोना पक्षपाती जीवो श्रवंध्य एवां पुण्यबीजवडे करीने, आ लोक अने परलोकमां गुणनी संपदाने पामे बे. वली जेप्रतिषिक (निषिक) देश ते श्रदेश अने निषेध करेलो काल होय ते अकाल कहेवाय ते संबंधी प्रवृत्ति ने करनारोते “अदेशकालचारी" कहेवाय. कारण के अदेशकालचारीने चोरी थादिकनो उपजव थाय . हवे परनी तथा पोतानी बल शक्ति जाणीने कार्य करनार, ते बलाबलने जाणनारो कहेवाय; कारण के, तेम करवायी सघj कार्य सिक थाय . कडं के, शक्ति प्रमाणे कसरत
SR No.011619
Book TitleYogshastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1899
Total Pages493
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size25 MB
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