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________________ प्रथमप्रकाश. २०१ तनार एटले, काम, क्रोध, लोभ, मान, मद छाने दर्षने जीतनार. काम एटले परने परणेली अथवा कुमारिकार्ड प्रत्ये विषय सेववानी इछा ते काम कड़ेवाय. परनां अथवा पोतानां नुकशानने नहीं विचारतां जे कोप करवो ते क्रोध कहेवाय. दानने योग्य एवा माणसो प्रत्ये न देनुं, तथा कारण विना परना धनने ग्रहण करयुं, ते लोज कहेवाय. कदाग्रही थ, श्रथवा युक्तियुक्त वचननुं न ग्रहण करवुं ते मान कहेवाय. कुल, बल, ऐश्वर्य, रूप तथा विद्यानो जे अहंकार, अथवा बीजाने तुडकारखं ते मद कवाय; अथवा कारण विना परने दुःख देवुं, तथा पोते, जुगार मृगया इत्यादि न य करवो, ते पण मद कड़ेवाय. तथा प्रमोद एटले हर्ष. ए ए अंतरंग शत्रुनो नाश करनार. कारण के ढंए नुकशानी नां हेतुबे तथा तेथी रावण आदिक दुःखो पाम्या डें. तथा इंडियोने वश करनार एटले अत्यंत आसक्ति पणाना त्यागथी स्पर्शादिक इंद्रि योने वश करनार, कारण के इंद्रियोनो जय पुरुषोने संपदामाटे थाय बे. कबे के, इंडियाने जे वशमां न राखवी, ते दुःखनो मार्ग बे, अने तेJने जे जीतवी, ते सुखनो मार्ग बे, माटे जे इष्ट लागे ते मार्गे जनुं, वली जे इंडियने वश राखवी ते स्वर्गरूप बे, छाने जे बुटी मुकवी, ते नरकरूप बे, वे सर्वथा प्रकारे जे इंद्रियोनो निरोध करवो, ते तो मुनियोनोज धर्म तो श्रावक धर्मने उचित एवा गृहस्थनुंज व्याख्यान बे, माटे ही अत्यंत सक्तिनो परिहार कहेलो बे. एवी रीतें उपर कहेला गुणोना समूहवालो माणस गृहस्थ धर्मने माटे योग्य याय बे अर्थात् अधिकारी गणाय . . एवी रीतें परमाईत श्री कुमारपाल राजाए सेवायेला श्राचार्य श्रीमचंमेें रचेला अध्यात्मोपनिषद् नामना संजातपट्टबंधरूप श्री योगशास्त्रना बार प्रकाशमांना प्रथमप्रकाशनुं पोते रचेलुं विवरण संपूर्ण थयुं.
SR No.011619
Book TitleYogshastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1899
Total Pages493
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size25 MB
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