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________________ ए प्रथमप्रकाश. रवामादे जोजन करवानी जरूरीश्रात . तेजेना अनावे जोजन करे तो "कारणाजाव” नामें दोष लागे. हवे श्रादानजंडनिदेपणा समितिनुं स्वरूप कहे . आसनादीनि संवीक्ष्य प्रतिलिख्य च यत्नतः॥ ग्रहीयान्निक्षिपेक्षा यत् सादानसमितिः स्मृता ॥३॥ अर्थः- श्रासनादिकने, जोश्ने, तथा जतना पूर्वक पडिलेहीने, ग्रहण करवां तथा मूकवां, तेनुं नाम "श्रादाननंडनिदेपणा' समिति कहेवू डे. टीकाः- श्रासन अने आदि शब्दथी, वस्त्र, पात्र, पाटीयां, दंडादिकनुं पण ग्रहण करतुं तेउँने आंखेथी सारी रीतें जोवां, तथा उपयोग पूर्वक रजोदरणादिकथी पडिलेहवां, कारण के, उपयोगपूर्वक पडिलेहणा न करावाथी उकायनो विराधक थाय . हवे उत्सर्गसमिति एटले पारिष्ठापणिका समितिनुं स्वरूप कहे . कफमूत्रमलप्रायं निर्जतुजगतीतले॥ यत्नाद्यउत्सृजेत्साधुः सोत्सर्गसमितिर्नवेत् ॥४०॥ अर्थः-साधु, जे कफ, मूत्र, मल आदिकने जंतुविनानी पृथ्वीपर नाखे,तेनुं नाम "उत्सर्ग समिति," एटले “पारिगवणिका" नामनी समिति जाणवी, टीकाः- श्रहीं आदि शब्दथी परध्ववा लायक, वस्त्र, पात्र, अन्न, पाणी श्रादिक, पण ग्रहण कर. हवे गुतियोमांनी मनोगुतिनुं स्वरूप कहे जे. विमुक्तकल्पनाजालं समत्वे सुप्रतिष्ठितं ॥ आत्मारामं मनस्तझै मनोराप्तिरुदाहृता ॥४॥ अर्थः- आर्त, रौद्ध ध्यानवाली कल्पनाथी रहित, ए पेहेली तथा शास्त्रानुसारें परलोक साधवामाटे धर्मध्यानवाली माध्यस्थ परिणति नामें वीजी, तथा सारं, मा जे चितवन, तेथी रहित, अने योगनिरोधावस्थावाली श्रात्मारामता नामनी त्रीजी, एम त्रण प्रकारनी मनोगति जाणवी. अथवा ते त्रणे नेदो मनोगुप्तिनां विशेषण तरिके समजवां.
SR No.011619
Book TitleYogshastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1899
Total Pages493
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size25 MB
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