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________________ GG योगशास्त्र देतुं, तेने परिणत नामें आठमो दोष जाणवो. श्लेष्म श्रादिकथी पाएला हाथ थवा वासणी अन्नादिक देवाथी " लिप्त ” नामे नवमो दोष जावो. घी श्रादिकना जमीनपर बांटा पाडीनें वोराववाथी “बर्दित" दोष जावो; कारण के, घी आादिक त्यां ढोलावाथी त्यां रहेला प्राणीउने म विंना दृष्टांती विराधनानो संभव बे. एवी रीतें उगम, उत्पादन, तथा एषणाना सघला दोषो मलवाथी वेंतालीश दोषो थाय छे. ते सघला निदाना दोषो बे. ते दोषोयें करीनें रहित जे अशन, खादिम, श्रने स्वादिम, ने उपलक्षणथी पाणी, रजोहरण, मुहपत्ति, चोलपट्टो, पात्रां स्थविरकल्पीने लायकनां चौद उपकरणो, तथा जिकल्पीनी बार उपधी, तथा साधवीनी पचीस उपधीर्ड तथा उपलक्षणथी शय्या, पाट, पाटला, दंडा यादिक पण ग्रहण कर, कारण के वर्षा, हेमंत, ग्रीष्म - तुमां रजोहरण, पाट, पाटला आदिकविना पाणीना की थी नरेली जमीनपर महाव्रतनुं रक्षण था शके नहीं उपर कहेली सघली वस्तुर्जने उपर कहेला दोषरहित जे मुनि ग्रहण करे तेने "एषणा समिति" जाणवी. उपर कहेली एषणा समिति गवेषणामात्र कडेली बे, अने उपलक्षथी ग्रासैषणा पण जाणवी, तेमां पांच दोषो लागे वे तेज॑नां नाम नीचे प्रमाणे बे. संयोजना, प्रमाणातिरिक्तता, अंगार, धूम, तथा करणाजाव नामें बे. रसना लोथी पुडला श्रादिकने अंदर तथा उपरथी घी खांड श्रादिकमां जे ऊबोलवां तेने "संयोजना" दोष जाणवो. जेटलो त्राहार करवाथी धीरज, बल, संयम, तथा मन, वचन, कायाना योगने बाधा न श्रावे, तेटलो श्राहार करवो, कारण के, अधिक श्राहार करवाथी वमन, मृत्यु तथा व्याधि थाय बे, तेने तजवो. ते दोषने " प्रमाणातिरिकता" नामें दोष जावो. स्वादिष्ट अन्न अथवा तेना देनारने वखा तो थको जे जोजन करे, ते रागरूपी अग्निश्री चारित्ररूपी काष्टोने वालीने कोलसारूप करवाथी "श्रंगार ” दोषने उत्पन्न करे; अने तेर्जनी निंदा करतो थको, चारित्ररूपी लाकडांने वालतो थको " धूम " दोषने उत्पन्न करे. मुनिने जोजन करवानां ब कारणो बे, ते नीचे प्रमाणे बे. भूखनी वेदना सहन न थवाथी कीण साधुनी वैयावच माटे, ईर्यासमि तिनी शुद्धिमाटे, संयम पालवामाटे, जी वितव्यमाटे, तथा ध्यानने स्थिर क
SR No.011619
Book TitleYogshastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1899
Total Pages493
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size25 MB
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