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________________ " अध्ययन पेहेलु. [११] एत्थ सत्यं असमारंभमाणस्स इन्चेते आरंभा परिणाया भवति । तं परि ण्णाय मेहावी व सयं उदयसत्थं समारंभेज्जा, वन्नेहिं उदयसत्यं सतारंभावेज्जा, उदयसत्थं समारं संतेवि अण्णे ण समणुजाणेज्जा अस्सेते उदयसत्थसमारंभा परिण्णाया भवंति से हु मुखी परिण्णायकम्मे तिबेमि । (२७) AGO [चतुर्थ उद्देश: ] से बेमि, णेव सयं लोगं अब्भाइक्खेज्जा, णेव अत्ताणं अब्भाइदरवेज्जा । जे लोग अग्भाइक्खति, से अन्ताणं अग्भाइक्खति; जे अचाणं अब्भाइक्खति, ते लोगं अभाइक्खति । [ २८ ] होती. अने जेओ ए पाणीनी हिंसा तथा करता तेमने आरंभ बाबत शुद्ध समज छे तथा तेने को आरंभ लागतो नयी. एवं जाणीने बुद्धिमान् पुरुषे जाते पाणीनी हिंसा न करबी, बीजा पासे न कराववी, अने तेना करनारने रुडुं पण नहि मानवु एवी रीते पाणी संबंधी आरंभोनी जेने माहिती होय तेज आरंभनुं स्वरूप जाणीने तेसो त्याग करनार मुनि जाणवो एस हुं हु हुँ. [७] चोथो उद्देश. अनिकायनी हिंसानो परिहार. 1 हु कछु के लोकनो एटले अनिकायना जीवानो अपलाप न करवो अने पोताना आत्मानो पण अपलाप न करवो. जे लोकनो अपलाप करे छे ते पोताना आत्मानो अपलाप करे छे; अने जे पोताना आत्मानो अपलाप करेछे ते लोकनो अपलाप करे छे. [२८] १ नोट कलम २००
SR No.011502
Book TitleAng 01 Ang 01 Acharang Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavjibhai Devraj
PublisherRavjibhai Devraj
Publication Year1906
Total Pages435
LanguagePrakrit, Gujarati
ClassificationBook_Gujarati, Agam, Canon, & Conduct
File Size17 MB
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