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________________ आचारांग - मूळ तथा भाषान्तर. [३८३] जावज्जीवाए तिविहंतिविहेणं मणसा वयसा कायसा । तरस भंते पडिक्कसामि, निंदामि, गरिहामि, अप्पार्ण वोसिरामि । ( १०२९) तस्सिमाओ पंच भावाणाओ भवंति : - (१०३०) तत्विमा पढसा भावणाः - इरियासमिए से णिग्गंथे, णो अणइरियासमिए त्ति; केवली बूटा - अणइरिया समिते णिग्गंथे पाणाई [४] अभिहज्ज वा, वत्तेज्ज वा परियावज्ज वा, लेसेज्ज वा, उद्दवेज्ज वा । इरियासमिए से विग्गंथे, णो इरियाअसमिए त्ति पढमा भावणा । (१०३१) अहावरा दोच्चा भावणा:- मणं परिजाणाइ से णिग्गंथे; जय मणे पावए सावज्जे सकिरिए अण्हयकरे छेयकरे भेयकरे अधिकरणिए पाउसिए परिताविते पाणातिवादिते भृतोवघातिए, तहप्पगारं मणं णो पधारेज्जा । के सुक्ष्म के बादर, सके स्थावर जीवनो यावज्जीवपर्यंत मनवचनकायाए करी त्रिवि पाते घात न करीश, बीजा पासे न करावीश अने करताने रुडुं न मानीश तथा ते जीवधातने पदमुं हुं, निदुद्धं, गरहुं हुं अने तेवा स्वभावने वोसरावुछ. (१०२९) तेनी आ पांच भावनाओ छे: - (२०३०) त्यां पेली भावना ए के सुनिए इर्शनमिति सहित था वर्त्तवं पण ति थड न वर्त्तं. कारण के केवळ ज्ञानी कहे छे के इर्ष्यासमिति रहित होय ते मुनि प्राणादिको घात विगेरे करतो रहे छे. माटे निवेदयमिति वर्त्त ए पेली भावना. [१०३१] बीजी भावना ए के निर्णय सुनिए मन ओळख पटोले के जे मन पाप भरें, सदोप, (भुंडी) किया सरित, कर्म वैधकारि छेद करनार भेद करनार, कलहकारक, महेष भरे, परिवस तथा जीव-भूतनुं उपचातक होय वा मनने
SR No.011502
Book TitleAng 01 Ang 01 Acharang Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavjibhai Devraj
PublisherRavjibhai Devraj
Publication Year1906
Total Pages435
LanguagePrakrit, Gujarati
ClassificationBook_Gujarati, Agam, Canon, & Conduct
File Size17 MB
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