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________________ [३२२] आचागंग-मूळ तथा भाषान्तर से भिक्खू वा भिक्खुणी वा सेज्जपुणं उग्गहं जाणेज्जा गाहाइकुलस्स मज्झेमज्झण गंतुं पंथेपडिबद्धं वा, णा पण्णस्स-जाव से एवं गच्चा तहप्पगारे उवस्सए णो उग्गहं उगिण्हेज वा [२] (८७९) । से भिक्खू वा भिक्षुणी वा सेज्जपुण उग्गहं जाणेज्जा-इहखल गाहावई वा जाव कम्मकरीओ वा अण्णमणं अकोसंति वा-तहेव तेल्लादि-सिणाणादि-सीओदगवियडादि-णगिणादि य-जहा सेज्जाए आलावगा । णवरं उगवत्तवता । (८८०) से भिक्खू वा भिक्खणी वा सेज्जपुण उग्गहं जाणेज्जा आइण्णसंलेक्खं णो पण्णस्स जाव चिंताए, तहप्पगारे उवस्सए णो उगगहं उगिण्हेज वा [२] (८८१) एयं खलु तस्स भिक्खुस्स [२] सामग्गियं । (८८२) मुनि अथवा आर्याए जे मकानमा गृहस्थोना समुदायमाथी थइने दाखर थइ शकातुं होय अने तेना लीधे प्राज्ञ पुरुषने नीकलवा पेशवामां अगवड भरेलु होय ते, मकान न लेवू [८७९] मुनि अथवा आर्याए जे मकानमां घरधणी के चाकरडीओ अरसपरस लढता शेय, तेज मुजव ज्यां तैलादिकथी अभ्यंगन करता होय, नहाता होय, अथवा नग्न थइ रहेता होय तेवा मकानमा रहेवू नहि. [८८०] मुनि अथवा आर्याए जे मकान चित्रामणथी भरपूर होय अने तेथी धर्मध्यानने अनुकूळ न होय तेवा मकानमा रहेवू नहि. [८८१] एज मुनि अथवा आर्याना आचारनी संपूर्णता छ के सर्व पावतोमा सावधान रहे. [८८२)
SR No.011502
Book TitleAng 01 Ang 01 Acharang Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavjibhai Devraj
PublisherRavjibhai Devraj
Publication Year1906
Total Pages435
LanguagePrakrit, Gujarati
ClassificationBook_Gujarati, Agam, Canon, & Conduct
File Size17 MB
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