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________________ आचारांग-मूळ तथा भाषान्तर भोसगा वत्थपडियाए संपिंडिया, ' णो तेसि भीओ उम्मग्गेण गच्छेजा। जाव गामाणुगामं दूइज्जेज्जा । (८३८) ' से भिक्खू वा भिक्खुणी वा गामाणुगामें दूइञ्जमाणे अंतरा' से आमोसगा पडियागच्छेज्जा, ते णं आमोसगा एवं वदेजा " आउसंतो समंणा; आहरेत्तं वत्थे, देहि निविख्वाहि, ” जहा इरियाए' णाणत्तं वस्थपड़ियाए । [८३९] एवं खलु तस्स भिक्खुस्स भिक्खुणीए वा सामग्गिय । १ ईर्याध्ययनवत् नानात्वं बोध्यं । टूटया माटे भराइ वेठा छे. तो तेमनाची घीही नहने आडे मार्गे नहि ज, किंतु धीरजथी तेज रस्ते चाल्या जवू. [८३८] . मुनि अथवा आर्याने ग्रामानुग्राम जतां बच्चे लूंटाराथो आवी मळे अने तेओ कहे के 'आयुप्मन् तपस्वी, आ वस्त्र लाव, दे, के छोड़ी दे" तो जेम इयाध्ययनमां कहेलुं छे सेम वर्तवं. [८३९] - . ए मुनि अथवा आर्याना आचारनी संपूर्णता छ. [८४०] , . . ।
SR No.011502
Book TitleAng 01 Ang 01 Acharang Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavjibhai Devraj
PublisherRavjibhai Devraj
Publication Year1906
Total Pages435
LanguagePrakrit, Gujarati
ClassificationBook_Gujarati, Agam, Canon, & Conduct
File Size17 MB
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