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________________ , अध्ययन चौद . . [१०५] से भिक्खू वा भिक्षुणी वा णो वण्णमंताई वत्थाई विवण्णाई करे। , न्जा; जो विवष्णाई घण्णमंताई करेज्जा; “अण्णं वा वत्थं लभिस्सामि ति" कटु अण्णमण्गरस देजा; णो पामिच्छ कुन्जा; णो बत्थेण वत्थपरि णाम करेजा; णो परं उबसंकमित्तु एवं वदेशा, “ आउसंतो समणा, अभिकखसि मे वत्थ धारित्तए वा परिहरित्तए वा;" थिरं वा ण संतं जो पलिच्छिदिय पलिच्छिदिय परिवेज्जा, जहाचेयं वत्थं पारगं-परो मम्नड । परं चणं अदत्तहार । पडिपहे पहाए तरस वत्थस्स णिदाणे णो तेसिंभीओ उम्मग्गेणं गच्छेज्जा । जाव अप्पुस्सुए जाव ततो संजयामेव गामा णुगामं दूइज्जेज्जा । [८३७] से भिक्खू वा भिक्खुणी वा गामाणुगाम दूइज्जेचा अंतरासे विहं २ सिया । से जं पुण विहं जाणज्जा 'इमंसि खलु विहंसि बहवे आ १ अदत्वहारिणं तस्कर. २ अटीप्रायः पंथाः । सुनि अथवा आर्याए शोभीती दाने (चोगेना एयण) कुगोभीता न करवाः कुशोभितां वस्त्रोने मुगाभिन न करवा "पदलाया हुं बीज बल मेळपशि" एग विचारी एक बीजाने वो आपयां नहि; वळी वलो उधारे पण आएवा नाह तथा एक वस्त्र आरी वी वस्त्र लेवू नहि तथा वीजा मुनिने ते वस्त्र लेवानुं पृछयु नहि, नया वस्त्र मजबुत छ्ता “ए वस्त्र वीजाओने सारु नी देग्वानु" एग दिचारी नेना फटका करी परठवयं नहि. वळी रस्ते जतां चोरोने देखी आडे मार्गे नहि च,लघु, किंतु धीरनधी यातनापूर्वक चाल्या . [८३७] मुनि अथवा आर्याने ग्रामानाम जतां बच्चे योदो गेदान आवी पडता बने त्यां एy जणाय के आ मेदानमां पणा लूंधाराओ स्टेमागुओना कपडा लत्ता १ मुख्यत्वे में तवां पर लेवांज नहि.
SR No.011502
Book TitleAng 01 Ang 01 Acharang Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavjibhai Devraj
PublisherRavjibhai Devraj
Publication Year1906
Total Pages435
LanguagePrakrit, Gujarati
ClassificationBook_Gujarati, Agam, Canon, & Conduct
File Size17 MB
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