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________________ [१४४] आचाराग-मूळ तथा भाषान्तर. अरतिं रति अभिभूय, रीयति माहणे अबहुवाई।१०। [४९३] स जणेहिं तत्थ पुच्छिसु, एगचरा वि एगदा राओ; अव्वाइते कसाइत्था, पेहमाणे समाहिं अपडिन्ने १११ (४९४) अय-मंतरंसि को एत्थ, अह-मसि-त्ति भिक्खू आहट्ट, अय-मुत्तमे से धम्मे, तुसिणीए सकसाइए झाति ।१२। जसि-प्पेगे पवेयंति', सिसिरे मारुए पवायंते । तसि-प्पेगे अणगारा, हिमवाए णिवाय५ मेसंति. १३॥ संघाडिओ पविसिस्सामी, एधा य समादहमाणा, पिहिता वा सक्खामो, अतिदुक्खं हिमगसंफासा ॥१४॥ तांस भगवं अपडिने, अधा वियडे अहियासए दविए.७ १ पृष्ट एकचरा उपपत्यादयः पप्रच्छु रितिशेषः ३ अव्यकृते ४ प्रवेपते यहा प्रवेदयंत्यनुभवति ५ निवातंवातरहितस्थानं. ६ वस्त्राणि ७ संयमी वळी भगवान हर्ष शोक टाळीने बहु थोडं बोलता थका विचरता रहेता. (निर्जन स्थळमां भगवानने उभेला जोइ) लोको पूछता अथवा रात्रिने वखते जार पुरुषो तेमने पूछता के अरे तुं कोण उभो छ ? आ वखते भगवान कशुं नहि वोलता; तेथी तेओ चीडवाइ दखते भगवानने मारवान पण करता. पण भगवान तो निरीह वन्या थका समाधियां तल्लीन वन्या रहेता. [४९४] ___ " अरे अहीं कोण उभो छे" एवं लोकोए पूछतां, कोइ वखते भगवान वोलता के “ हुं भिक्षुक उभो छ." ते सांभळी जो तेओ बोलता के " अहीथी जलदी जता रहे " तो भगवान अन्यत्र जता. कारण के ए उत्तम आचार छे. अने जो तेओ जवानुं कशुं नहि कहेतां कपायवंत वनता तो भगवान मौन रही त्यां ज [जे थवातुं हशे ते थशे एम विचारी] ध्यान करता. (४९५) ज्यारे शिशिर रुतुमां चंडो पवन जोसधी फुकातो हतो, ज्यारे लोको थरथर
SR No.011502
Book TitleAng 01 Ang 01 Acharang Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavjibhai Devraj
PublisherRavjibhai Devraj
Publication Year1906
Total Pages435
LanguagePrakrit, Gujarati
ClassificationBook_Gujarati, Agam, Canon, & Conduct
File Size17 MB
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