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________________ [४] आचारांग-मूळ तथा भाषान्तर. लुक्खे, ण काऊ, १ ण रुहे, ण संगे, ण इत्थी, ण पुरिसे, णअन्नहा,२ परिणे, सणे । (३६१) उयमा ण विज्जती । अरूवी सत्ता। अपयस्स पयं णत्यि! (३३२) से ण सद्दे, ण रूवे, ण गंधे, ण रसे, ण फासे इच्चेतावांत ति बेमि । (३३३) - - - १ न काय-कायावान् नपुंसक इत्यर्थः नार, नथी संगपामनार; नथी स्त्रीरुप, नथी पुरुषरुप, नथी नपुंसकरुप; किंतु ज्ञाता अने परिज्ञाता थइ विराजे छे. [३३१] मुक्त जीवोने जणाववा माटे उपमा कोइ छ ज नहि. केमके तेओनी अरुपी हैयाती रहेली छे, तेमज तेओने कशी पण अवस्थाविशेष छे नहि, माटे तेमने जणाववा माटे कोइ शब्दनी पण शक्ति नथी. [३३२] कैमके तेओ नथी शब्द रुप, नयी रुपरुप, नथी गंध रुप, नथी रस रुप अने नथी स्पर्श रुप. (अने वाच्य वस्तुना विशेष तो मात्र ए शब्दादिक पांच 'गुणज छे ते मुक्त जीवोमा छे नहि माटे तेओ अवाच्य छे.) [३३३]
SR No.011502
Book TitleAng 01 Ang 01 Acharang Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavjibhai Devraj
PublisherRavjibhai Devraj
Publication Year1906
Total Pages435
LanguagePrakrit, Gujarati
ClassificationBook_Gujarati, Agam, Canon, & Conduct
File Size17 MB
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