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________________ भी लोक रीतिके अर्थ समझा कर महात्मा परम मित्रभ गवान ऋषभदेव शांति परिणामी नाश कियाहै कर्म जि न्होंने भक्तिवान ज्ञानवान वैरागी महा मुनीश्वरोंको परम हंस धर्म उपदेश देते हुवे और सौ१०० बेटोंमें बड़े मनुष्यों में तत्पर ऐसे भरतको पृथ्वीके पालनेके वास्ते राज्य देकर और आप केवल शरीर मात्र परिग्रह रखकर केश नोंचकर नग्न आत्मामें स्थापन किथाहै ब्रह्म स्वरूप जिन्होंने उन्म त्तकी तुल्य पृथ्वीपर भ्रमण करते संते हमारी रक्षाकरो जिन धर्म जिन गुरू और जिन देव की वडाई हिन्दू शास्त्रों में इसप्रकार की गई है। भर्तृहरिशतक वैराग्य प्रकरण । ___एकोरागिषुराजतेप्रियतमा देहाईधारीहरी । नी रागेषुजितोविमुक्तललनासांगोनयस्मात्परः ॥ दुर्वा रस्मरवाणपन्नगविषयासक्तमग्धोजनः । शेषःकामविडंबितोहि विषयान भोक्तुंनमोक्तुंक्षमः ॥ अर्थ--वडी प्यारी गौरी के आधे देह को धारण किये हुवे रागी पुरुषों में एक शिव ही शोभता है और बीतरागियों में ऐसे जिन देव से बढकर और कोई नहीं है जिन्हों ने स्त्रियोंके संग को ही छोडदिया है इन दोनो परम बीतरागी जिन देव से जो भिन्न पुरुष हैं जो कामदेव रूपी विष के चढने से पागल होरहे हैं वह पुरुष न विषयों के छोडने को समर्थ हैं और न भोगने को समर्थ हैं। भावार्थ--इस में शिव को परम रागी और जिन भग
SR No.011027
Book TitleLecture On Jainism
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLala Banarasidas
PublisherAnuvrat Samiti
Publication Year1902
Total Pages391
LanguageEnglish
ClassificationBook_English
File Size14 MB
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