SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 367
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (७) हुति देता हूं। रक्षा करने वाले ऋषभदेव और अमृत और सुगत और सुपार्श्व भगवान और अजितनाथ भगवान और वर्द्धमान स्वामी को आहुति देता हूँ। वृद्धश्रवा इन्द्र कल्यान करे और विश्ववेदा सूर्य हमें कल्यान करै तथा अरिष्टनेमि भगवान हमैं कल्यान करै और बृहस्पति हमारी कल्यान करै । दीर्घायु को और बलको और शुभ मंगल को दे। और हे अरिष्टनेमि महाराज हमारी रक्षा कर । भावार्थ--श्री ऋषभदेव श्री सुपार्श्व भगवान और अ. जितनाथ भगवान और वर्द्धमान स्वामी और अरिष्टनेमि भगवान यह सब जैनियों के तीर्थंकर हैं जिनकी मूर्तिजैनी लोग बनाते हैं और भक्ति करते हैं यजुर्वेदके इस सूत्र में नग्न ऐसी प्रशंसा भी इन भगवान की करी है। भागवत ग्रंथ ।। एवमनुशास्यात्मजान्स्वयमनुशिष्टान्नपिलोकानु शासनाथमहानुभाव परमसुहृद भगवान् ऋषभाय देशःउपयमशीलानामुपरतकर्मणांमहामुनीनाभक्ति ज्ञानवैराज्ञलक्षणं । पारमहस्यंधर्ममुपशिक्षमाणः स्वतनयशतज्येष्टंभगवज्जनपरायणंभरतंधरणिपाल नायाभिषिंच्यस्वयं नमरावोर्वरितशरीरमात्रपरिग्रह उन्मत्तइवगगनपरिधानप्रकीर्णकेशः अात्मन्यारोपि ताहवनीयोब्रह्मावतात्त्रवशज ॥ अर्थ-वह ऋषभदेव भगवान इस प्रकार अपने बेटों को समझा कर उनके बेटे यद्यपि आपही ज्ञानवान हैं तो
SR No.011027
Book TitleLecture On Jainism
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLala Banarasidas
PublisherAnuvrat Samiti
Publication Year1902
Total Pages391
LanguageEnglish
ClassificationBook_English
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy