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________________ वान अर्थात् जैनियों के देवता को परम वीतरागी कहकर प्रशंसा की है और रागअर्थात् विषय भोग की निन्दा की है। योगनासिष्ट प्रथम वैराग्य प्रकरण । नाहंरामोनमेवांछा भावेषुचनमेमनः । शान्ति मास्थातुमिक्षामि चात्मनैवजिनोयथा ॥ अर्थ-रामजी बोले कि न में राम हूं न मेरी कुछ इ. च्छा है और न मेरा मन पदार्थों में है में केवल यह चाहता हूं जिन देवकी तरह मेरी आत्मा में शान्त हो भावार्थ--रामजी ने जिन समान होने की वाञ्छा करी इससे विदित है कि जिन देव अर्थात् जैनियों के देवतारामजी से पहले और उत्तमोत्तम है ___ दक्षिणामूर्तिमहबनाम ग्रन्थ । शिव उवाच । जैनमार्गरतोनी जितक्रोधोजिता मयः॥ ___ अर्थ--जन मार्ग में रतिकरने वाला जैनी क्रोध के जीत ने वाला और रोगों के जीतने वाला ___ भावार्थ-यह भगवान के नाम वर्णन किये हैं कि वह जेन मार्ग अर्थात् जैनधर्म पर चल ने वाला है जैनी है वैशंपायनसहस्रनाम ग्रन्थ । कालनेमि महाबीरःशरःशौरिर्जिनेश्वरः। अर्थ-भगवान के नाम इस प्रकार वर्णन किये हैं। कालनेमिके मारने वाला, वीर बलवान, कृष्ण और जिनेश्वर । महिम्नस्तोत्र । तत्रदर्शनेमुख्यशक्ति रितिचत्वब्रह्मकर्मेश्वरी।क
SR No.011027
Book TitleLecture On Jainism
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLala Banarasidas
PublisherAnuvrat Samiti
Publication Year1902
Total Pages391
LanguageEnglish
ClassificationBook_English
File Size14 MB
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