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________________ ३२ । रतन परीक्षक। ॥ आदि कर्ण भूपत पै जानो । इको तेरा मासे मांनो ।। ॥ पुनी भूप विक्रम पे आयो । तो उनकोटथान बनवायो॥ ॥ छब्बीस मासे तोल पळांन । ऊपर रत्ती पांच प्रमांन । ॥पनि औरंगजेब ढिंग आयो । जाके सम जगौर नभायो। ॥ओगे सम्बत इसवी जॉन । तेरां से दोऊ पर मान॥ ॥ अलाउलदीन पास तब आयो। उत्तमरतन कोहनूर कहायो। ॥तो पुनि काबुल बोच विचार । अहमद शाप पाल पुनिधार॥ ॥ तौ पुनि ताको पुत्र बिचारो । जलाउलशाह पास मनधागे। ॥ आगे सम्बत इसवी जांन। ठारां से तेनं परिमांन । ॥ तादिन हीरा तवपुर आयो । रणजीतसिंह के पासशुभायो॥ ॥ रणजीतसिंह पूछा हितजान । जाकी कीमत करो बखान ।। ॥ जलाउल शाह कही सुनसोई। कीमत तेग और न होई ।। ॥बिना जोर कामत जगनाही । सुन सरकार हर्ष मनमाही। ॥वर्ष सतत्री लवपुर जॉनी । रहा विलायतसोअवमानो। । आगे संवत इसवी जोन । ठारों से पंचास प्रमान ।। ॥ अंग्रेज बहादुर सोलेगए । देख देख मन आनन्दभए । ॥कर विचार निश्चा मनधारी । काटन की तजबीज बिचागे। ॥रोम सईम शहर का जानो। रोवर सेंगर नाम पानो॥ ॥ कारीगर को लिया बुलाई। तो उन काटन युगति बनाई। ॥दोहा॥ ॥ छबिस मासे तोलथा । काट बनाया सोय ॥ मंजूरी अस्सी हजार। पंद्रां मासे होय ॥ ॥ अति उत्तम अवसो बना । जाके सम नहिं होय ॥ मलका जी के छत्र में । अति उत्तम अव होय ॥ ॥ कोह नूर तापै दहै । काट बनाया सोय ।। ॥ जाके सम दूसर नही। देख हर्ष मन होय ॥
SR No.011027
Book TitleLecture On Jainism
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLala Banarasidas
PublisherAnuvrat Samiti
Publication Year1902
Total Pages391
LanguageEnglish
ClassificationBook_English
File Size14 MB
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